स्वांग पहरि सोरहा भया खाया पीया खूंदि हिंदी मीनिंग Swang Pahari Soraha Meaning : kabir Ke Dohe Hindi arth/Bhavarth
स्वांग पहरि सोरहा भया, खाया पीया खूंदि।
जिहि सेरी साधू नीकले, सो तौ मेल्ही मूंदि॥
Swang Pahari So Raha Bhaya, Khaya Peeya Khundi,
Jihi Seri Sadhu Nikale, So To Melhi Mundi.
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
कबीर साहेब भक्ति के नाम पर विभिन्न प्रकार के स्वांग और आडम्बर पर वाणी देते हैं की आत्मिक रूप से साधू बनाना बहुत कठिन है, लोग वास्तविक भक्ति ना करके दिखावटी भक्ति करते हैं, वे सच्चे संत नहीं होते हैं. ऐसे लोग खा पीकर मस्त रहते हैं उनको भक्ति से कोई लेना देना नहीं होता है. सच्चाई तो यह है की जिस गली से साधू गुजरता है वह तो तुमने बंद करके रख छोड़ी है तो सच्चा ज्ञान कैसे प्राप्त करोगे. कबीर इस दोहे में दिखावे पर व्यंग्य करते हैं। वे कहते हैं कि कुछ लोग बाहर से तो साधु बनते हैं, लेकिन अंदर से वे लोभी और स्वार्थी होते हैं। वे कहते हैं कि ऐसे लोग साधुओं के मार्ग को भी रोक देते हैं।
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