समझ निशा में जान निशाचर भजन
समझ निशा में जान निशाचर भजन
समझ निशा में जान निशाचर,
भरत जी ने छोड़ा तीर,
राम राम कह गिर गए,
धरण पे हनुमत वीर।
रावण सूत मेघनाद ने,
छोड़ा है शक्ति बाण,
भैया लक्ष्मण के पड़ गए,
देखो संकट में प्राण।
हनुमान की बातें सुनकर के,
गम की बदरिया छा गई,
हनुमान के दर्शन करने को,
सारी अयोध्या नगरी आ गई।
हनुमान जाकर,
राम जी से कहना,
मेरे लखन के प्राण,
जाय तो जाएं,
बिना जानकी के राम,
अयोध्या ना आए।
धन्य है लखन जो उनकी,
गोदी में लेटा,
लड़ने भेज दूँगी अपना,
दूसरा भी बेटा,
रोकना ही होगा,
इन आँसुओं का बहना,
मेरे लखन के प्राण,
जाय तो जाएं,
बिना जानकी के राम,
अयोध्या ना आए।
कौशल्या,
धन्य है सुमित्रा सत की,
क्षमता लुटा दी,
मेरी ममता पे अपनी,
ममता लुटा दी,
हँसकर दिया है अपनी,
गोदी का गहना,
कष्ट राम इनकी खातिर,
पाए तो पाए,
बिना लखन के राम,
अयोध्या ना आए।
अयोध्या की खुशियों में,
सहायक नहीं हूँ,
और क्षमा माँगने के भी,
लायक नहीं हूँ,
मेरी वजह से उनको,
पड़ा कष्ट सहना,
ये दुनिया वाले मुझपे सितम,
ढाए तो ढाए,
बिन सिया लखन के राम,
अयोध्या ना आए।
धरम धरा को धारण करता,
वो रघुवंश का बेटा,
अरे मौत भी उसका क्या कर पाए,
जो प्रभु की गोद में लेटा।
सूर्यवंश की मैं कुलवधू हूँ,
वो मन में मुदित नहीं होंगे,
अपनी बहू को विधवा बनाने,
वो कभी उदित नहीं होंगे।
जो करने को आए हैं,
वो करना ज़रूरी,
रावण जैसे पापियों का,
मरना ज़रूरी,
रामवीर ऐसे भजन,
लिखते ही रहना,
छाप काट गाने वाले,
गाएँ तो गाएँ,
बिन रावण को मारे राम,
अयोध्या ना आए।
हनुमान जाकर,
राम जी से कहना,
मेरे लखन के प्राण,
जाय तो जाएं,
बिना जानकी के राम,
अयोध्या ना आए।
भरत जी ने छोड़ा तीर,
राम राम कह गिर गए,
धरण पे हनुमत वीर।
रावण सूत मेघनाद ने,
छोड़ा है शक्ति बाण,
भैया लक्ष्मण के पड़ गए,
देखो संकट में प्राण।
हनुमान की बातें सुनकर के,
गम की बदरिया छा गई,
हनुमान के दर्शन करने को,
सारी अयोध्या नगरी आ गई।
हनुमान जाकर,
राम जी से कहना,
मेरे लखन के प्राण,
जाय तो जाएं,
बिना जानकी के राम,
अयोध्या ना आए।
धन्य है लखन जो उनकी,
गोदी में लेटा,
लड़ने भेज दूँगी अपना,
दूसरा भी बेटा,
रोकना ही होगा,
इन आँसुओं का बहना,
मेरे लखन के प्राण,
जाय तो जाएं,
बिना जानकी के राम,
अयोध्या ना आए।
कौशल्या,
धन्य है सुमित्रा सत की,
क्षमता लुटा दी,
मेरी ममता पे अपनी,
ममता लुटा दी,
हँसकर दिया है अपनी,
गोदी का गहना,
कष्ट राम इनकी खातिर,
पाए तो पाए,
बिना लखन के राम,
अयोध्या ना आए।
अयोध्या की खुशियों में,
सहायक नहीं हूँ,
और क्षमा माँगने के भी,
लायक नहीं हूँ,
मेरी वजह से उनको,
पड़ा कष्ट सहना,
ये दुनिया वाले मुझपे सितम,
ढाए तो ढाए,
बिन सिया लखन के राम,
अयोध्या ना आए।
धरम धरा को धारण करता,
वो रघुवंश का बेटा,
अरे मौत भी उसका क्या कर पाए,
जो प्रभु की गोद में लेटा।
सूर्यवंश की मैं कुलवधू हूँ,
वो मन में मुदित नहीं होंगे,
अपनी बहू को विधवा बनाने,
वो कभी उदित नहीं होंगे।
जो करने को आए हैं,
वो करना ज़रूरी,
रावण जैसे पापियों का,
मरना ज़रूरी,
रामवीर ऐसे भजन,
लिखते ही रहना,
छाप काट गाने वाले,
गाएँ तो गाएँ,
बिन रावण को मारे राम,
अयोध्या ना आए।
हनुमान जाकर,
राम जी से कहना,
मेरे लखन के प्राण,
जाय तो जाएं,
बिना जानकी के राम,
अयोध्या ना आए।
बिना जानकी के राम अयोध्या ना आए / Bina Janki Ke Ram Ayodhya Na Aaye / Moinuddin Manchala Bhajan
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लक्ष्मण के शक्ति बाण से मूर्छित होने पर समूचे युद्धभूमि का वातावारण बदल जाता है। हनुमान की व्यथा में सारी अयोध्या की आंखें भीग उठती हैं। उस पीड़ा में न केवल भाई के लिए करुणा है, बल्कि एक समष्टिगत चिंता भी है—राम के वियोग का संताप सबका बन गया है। हनुमान का संदेश इस करुणा को चरम पर पहुंचाता है—यदि जानकी के बिना राम लौटे तो वह अयोध्या न जाएं, क्योंकि राम का अस्तित्व उनके प्रिय जनों के बिना अधूरा है।
सुमित्रा की वाणी मातृत्व की गौरवशाली मिसाल है। अपने पुत्र के प्राण संकट में देखकर भी वह कहती हैं—यदि धर्म की रक्षा के लिए लखन के प्राण जाएं तो जाने दें, किंतु राम‑सीता का वियोग स्वीकार्य नहीं। यह वाणी एक माँ के आत्मबल का प्रतीक है, जो बेटे पर ममता से ऊपर धर्म को रखती है।
कौशल्या का भाव मातृत्व की परम गहराई को छूता है—वह अपनी ममता सुमित्रा पर न्योछावर करती हैं, और कहती हैं कि यदि राम को कष्ट भी उठाना पड़े तो भी वह निभाएँ, पर अकेले न लौटें। यह स्नेह, वेदना और सहानुभूति का अद्भुत संगम है।
कैकयी के शब्द पश्चाताप और आत्मग्लानि के प्रतीक हैं। वह स्वीकारती हैं कि अयोध्या की खुशियों में उनका कोई स्थान नहीं; उनके कारण ही संकट आया, किन्तु अब वह भी उसी वेदना में सहभागी हैं। यहाँ अपराधबोध भी है और प्रायश्चित की भावना भी, जिससे उनका चरित्र मानवीय और कोमल बनता है।
सुमित्रा की वाणी मातृत्व की गौरवशाली मिसाल है। अपने पुत्र के प्राण संकट में देखकर भी वह कहती हैं—यदि धर्म की रक्षा के लिए लखन के प्राण जाएं तो जाने दें, किंतु राम‑सीता का वियोग स्वीकार्य नहीं। यह वाणी एक माँ के आत्मबल का प्रतीक है, जो बेटे पर ममता से ऊपर धर्म को रखती है।
कौशल्या का भाव मातृत्व की परम गहराई को छूता है—वह अपनी ममता सुमित्रा पर न्योछावर करती हैं, और कहती हैं कि यदि राम को कष्ट भी उठाना पड़े तो भी वह निभाएँ, पर अकेले न लौटें। यह स्नेह, वेदना और सहानुभूति का अद्भुत संगम है।
कैकयी के शब्द पश्चाताप और आत्मग्लानि के प्रतीक हैं। वह स्वीकारती हैं कि अयोध्या की खुशियों में उनका कोई स्थान नहीं; उनके कारण ही संकट आया, किन्तु अब वह भी उसी वेदना में सहभागी हैं। यहाँ अपराधबोध भी है और प्रायश्चित की भावना भी, जिससे उनका चरित्र मानवीय और कोमल बनता है।
श्रावण के पवित्र मास के उपलक्ष्य में एक शाम भोलेनाथ के नाम विशाल भक्ति संध्या स्वर - बाबा मोइनुद्दीन मनचला , सुरलहरी लेहरुदास वैष्णव , पँ. धनराज जोशी , जगदीश वैष्णव , पिंटू सेन , मशरूम मनचला , महेश पालीवाल मंच संचालक - मुकेश पालीवाल ( महालक्ष्मी म्यूजिकल ग्रुप , कांकरोली , राजसमंद ) साउंड - भैरुनाथ साउंड , धोइंदा स्थान - कुंतेश्वर महादेव , फरारा मन्दिर , राजसमंद
आयोजक - ठा. सा. तेजसिंह जी च. कु. सा. शम्भू सिंह जी , भगवत सिंह जी राठौड़ एव समस्त परिवार , बल्लियों का गुड़ा , राजसमंद
आयोजक - ठा. सा. तेजसिंह जी च. कु. सा. शम्भू सिंह जी , भगवत सिंह जी राठौड़ एव समस्त परिवार , बल्लियों का गुड़ा , राजसमंद
Captured By :- Lakecity Channel Udaipur - 8233131359
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Author - Saroj Jangir
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