सतगुरु की महिमा अनँत हिंदी मीनिंग Satguru Ki Mahima Anant Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth/Bhavarth Sahit
सतगुरु की महिमा अनँत अनँत उपगार।लोचन अनँत उघाड़िया अनँत दिखावणहार॥३॥
Satguru Ki Mahima Anant Anant Upgar,
Lochan Anant Ughadiya Anant Dikhavanhar
भावार्थ: कबीर साहेब ने इस दोहे में सतगुरु की महिमा का वर्णन करते हुए कथन दिया है की सतगुरु की महिमा अनन्त है। उनकी महत्ता का वर्णन नहीं हो सकता है। उन्होंने शिष्य के प्रति अनन्त उपकार किए हैं, उन्होंने साधक पर अनंत उपकार किये हैं। सतगुरु की असीम कृपा से अनन्त अर्थात लम्बे समय से अज्ञान में पड़े व्यक्ति के ज्ञान के चक्षु उद्घाटित/प्रकाशित किया है। उनकी असीम कृपा से अनंत, निराकार निर्विकार ब्रह्म/ईश्वर के दर्शन हुए हैं।
संदर्भ : सतगुरु ही शक्तियों का पुंज है जो अपनी दिव्यशक्ति से साधक को भव से पार करता है। सतगुरु की शक्ति, महत्ता, महिमा अनंत होती है। सतगुरु ने अनन्त कृपा करके शिष्य को अपरिमेय शक्ति से संपन्न कर दिया है।
शब्दार्थ
- अनंत = अनन्त, असीम।
- उपगार = उपकार।
- लोचन = नयन।
- उघाड़िया = उघाड़,
- उद्घाटित किया।
- दिखावण्हार = दिखावनहार = दिखाने वाला।