हरदम आवै थांरी याद श्याम कीर्तन
हरदम आवै थांरी याद श्याम कीर्तन भजन
श्याम कीर्तन म,
पीळी पगड़ी धोळो चोलो,
धोती चूनड़ वाळी,
श्याम भजन मं ठुमक-ठुमक,
लेता मस्ती मतवाळी,
करता था अैं सं सारी बात,
श्याम कीर्तन मं।
बाळक बूढो नर ओर नारी,
सैं की बातां सुणता,
जो भी होतो बैं को संकट,
श्याम धणी सं कहता,
अैं की भी बिपदा काट,
श्याम कीर्तन मं।
कोई-कोई अरदास इसी थी,
ताबे यो न आतो,
लाग्या रैता भजनां मांई,
जद तांई न सुणतो,
सुमीरण का था ठाट,
श्याम कीर्तन मं।
भजनां री मस्ती बाबाजी,
जो थांरै संग लेली,
लाख चेष्टा करणै पर भी,
सुरतां फिरै अकेली,
मिलवाद्यो म्हारा तार,
श्याम कीर्तन मं।
दिण हो चैत बदी ग्यारस को,
औ मनड़ो नईं कोई कै बसको,
जिंनै पड्यो नांव को चसको,
कर दिन्यो प्रभु भागी जसको।
तीर्थ स्थान धाम तैं पायो,
हो गयो भव स्यूं पार,
बाबो आपो दिन्यो सुंवार,
म्हे जावां चरणां मं बलिहार।
Hardum Aave Thari Yaad Shyam Kirtan Mein - चैत बदी ग्यारस - Ghanshyam Das ji @shyambhavbhajan
Singer - Sri Sajjan Ji Singhania, Kolkata
'श्याम' शब्द का मूल अर्थ गहरा, काला या साँवला होता है। श्रीकृष्ण का रंग गहरा नीला या साँवला था, जो भारतीय परंपरा में बादलों या रात्रि के रंग से जोड़ा जाता है। हालाँकि, यह रंग केवल उनकी शारीरिक बनावट को ही नहीं दर्शाता, बल्कि उनके गूढ़ और रहस्यमय व्यक्तित्व का भी प्रतीक है। जिस प्रकार श्याम रंग अपने भीतर अनंतता (आकाश) और शीतलता (बादल) समाहित किए होता है, उसी प्रकार श्रीकृष्ण भी अपने भीतर सम्पूर्ण ब्रह्मांड के रहस्य, आकर्षण और अलौकिक प्रेम को समाहित किए हुए हैं, यही कारण है कि भक्त उन्हें प्रेम से 'श्याम' या 'श्याम सुन्दर' कहकर पुकारते हैं।
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Author - Saroj Jangir
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