क्षिप्रा किनारे बैठे हुए हैं मोरे उज्जैन के महाराज भजन
क्षिप्रा किनारे बैठे हुए हैं मोरे उज्जैन के महाराज भजन
भस्म से श्रृंगार सजा है,
ऐसा अलौकिक रूप है,
चंद्र विराजे माथे मुकुट सा,
ऐसा उनका स्वरूप है।
क्षिप्रा किनारे बैठे हैं शंभू,
क्षिप्रा किनारे विराजमान हैं,
मोरे उज्जैन के महाराज,
उज्जैन के महाराज,
मोरे उज्जैन के महाराज,
क्षिप्रा किनारे बैठे हुए हैं,
मोरे उज्जैन के महाराज।
तेरी नगरिया आते हैं योगी,
आते हैं अघोरी आते हैं जोगी,
मेला ये भक्तों का,
तेरे ही रंग में रंगे हुए,
तेरे ही दीवाने तेरे ही रंग में,
रंग की धूम मचाई रे,
भस्म रमाए बैठे हुए हैं,
मोरे देवों के सरताज,
शिप्रा किनारे बैठे हुए हैं,
मोरे उज्जैन के महाराज।
भक्त हूं भोले तेरा पुराना,
तेरे नाम से यह जाने जमाना,
जितना भी दे दे तू,
ज्यादा ना कम है,
तुझसे शुरू सब,
तुझ पर ही खत्म है,
उज्जैन पलटाए बैठे हुए हैं,
मोरे उज्जैन के महाराज,
भस्म रमाए बैठे हुए हैं,
देवों के सरताज,
शिप्रा किनारे बैठे हुए हैं,
मोरे उज्जैन के महाराज।
तेरे नगर की डगर पर मैं आता हूं,
मदमस्त सी हवा में खो जाता हूं,
भर आती हैं आंखें दर्शन तेरा पाकर,
सांसों में भी तुझको ही पाता हूं,
शिप्रा किनारे बैठे हुए हैं,
मोरे उज्जैन के महाराज।
ऐसा अलौकिक रूप है,
चंद्र विराजे माथे मुकुट सा,
ऐसा उनका स्वरूप है।
क्षिप्रा किनारे बैठे हैं शंभू,
क्षिप्रा किनारे विराजमान हैं,
मोरे उज्जैन के महाराज,
उज्जैन के महाराज,
मोरे उज्जैन के महाराज,
क्षिप्रा किनारे बैठे हुए हैं,
मोरे उज्जैन के महाराज।
तेरी नगरिया आते हैं योगी,
आते हैं अघोरी आते हैं जोगी,
मेला ये भक्तों का,
तेरे ही रंग में रंगे हुए,
तेरे ही दीवाने तेरे ही रंग में,
रंग की धूम मचाई रे,
भस्म रमाए बैठे हुए हैं,
मोरे देवों के सरताज,
शिप्रा किनारे बैठे हुए हैं,
मोरे उज्जैन के महाराज।
भक्त हूं भोले तेरा पुराना,
तेरे नाम से यह जाने जमाना,
जितना भी दे दे तू,
ज्यादा ना कम है,
तुझसे शुरू सब,
तुझ पर ही खत्म है,
उज्जैन पलटाए बैठे हुए हैं,
मोरे उज्जैन के महाराज,
भस्म रमाए बैठे हुए हैं,
देवों के सरताज,
शिप्रा किनारे बैठे हुए हैं,
मोरे उज्जैन के महाराज।
तेरे नगर की डगर पर मैं आता हूं,
मदमस्त सी हवा में खो जाता हूं,
भर आती हैं आंखें दर्शन तेरा पाकर,
सांसों में भी तुझको ही पाता हूं,
शिप्रा किनारे बैठे हुए हैं,
मोरे उज्जैन के महाराज।
हमारे उज्जैन के महाराज शिव शंभू क्षिप्रा किनारे भस्म रमाए बैठे हैं। उनका अलौकिक रूप मन को शांति देता है। माथे पर चंद्रमा, शरीर पर भस्म और आंखों में करुणा का सागर। उनकी नगरी में साधु, योगी और अघोरी दूर-दूर से खिंचे चले आते हैं जैसे कोई आकर्षण उन्हें खींच लाता हो। मेला लगता है सब शिवमय होकर झूमते हैं। हम जब भी उज्जैन आते हैं तो मन एक अनोखी शांति में डूब जाता है। बाबा के दर्शन करते ही आंखें भीग जाती हैं जैसे आत्मा को उसका घर मिल गया हो। जीवन की सारी उलझनों का अंत उन्हीं के पास होता है। उनका आशीर्वाद ही जीवन की सबसे बड़ी दौलत है। हम उनके सच्चे भक्त हैं और यही हमारी सबसे बड़ी पहचान है। जय महाकाल।
क्षिप्रा किनारे - Shipra Kinare | Ujjain Ke Maharaj - उज्जैन के महाराज | Kishan Bhagat | Shiv Bhajan
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Admin - Saroj Jangir
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