जिथे रवां मैं मेरी दातिए मेरे अंग संग रहना

जिथे रवां मैं मेरी दातिए मेरे अंग संग रहना भजन

 
जिथे रवां मैं मेरी दातिए मेरे अंग संग रहना भजन

जिथे रवां मैं मेरी दातिए,
मेरे अंग संग रहना,
अंग संग रहना,
मेरे संग संग रहना।

चाहे हो कालिया राता,
चाहे हनेरिया राता,
बांह पकड़ मेरी दातिए,
मेरे अंग संग रहना।

किसे दा कोइ सहारा,
किसे कोइ सहारा,
मेरा सहारा तुही दातिए,
मेरे अंग संग रहना।

चाहे मैनू तुप सतावे,
चाहे मैनू दुःख सतावे,
डोल न जावा मेरी दातिए,
मेरे अंग संग रहना।

सारा जग छोड़ के बैठी,
तेरे नल प्रीता लाईया,
चरना नल ला के रखी,
पावी न कदे जुदाईया,
अपना बना लै मेरी दातीए,
मेरे अंग संग रहना।

जिथे रवां मैं मेरी दातिए,
मेरे अंग संग रहना,
बांह पकड़ मेरी दातिए,
मेरे अंग संग रहना,
मेरा स हारा तूही दातिए,
मेरे अंग संग रहना।


जिथे रवां मैं मेरी दातिए मेरे अंग संग रहना भजन
 
चाहे उसके जीवन में काली (मुश्किल) रातें हों या अंधियारी (समस्याओं से भरी) रातें, माँ उसकी बांह पकड़कर (सहारा देकर) उसके साथ रहें। वह अपनी असहायता व्यक्त करते हुए कहता है कि जहाँ दूसरों के पास अनेक सहारे हैं, वहाँ उसका एकमात्र सहारा केवल माँ ही हैं, इसलिए माँ उसे कभी न छोड़ें। भक्त कहता है कि चाहे उसे धूप (कठिनाइयाँ) सताए या कोई गहरा दुख परेशान करे, माँ को सुनिश्चित करना चाहिए कि वह कभी भी अपने विश्वास से डगमगा (डोल) न जाए।
 
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