तेरी शरण में आके मैं धन्य हो गया

तेरी शरण में आके मैं धन्य हो गया

 
तेरी शरण में आके मैं धन्य हो गया

तेरी शरण में आके,
मैं धन्य हो गया,
जन्मों की प्यास थी जो,
मैं सम्पन्न हो गया,
तेरी शरण मे आके,
मैं धन्य हो गया,
तुझको अपना बनाके,
मैं धन्य हो गया।

कितने मिले अमीर यहां,
कितने मिले गरीब,
पर आप मिल गये तो,
धनवान हो गया,
तेरी शरण मे आके,
मैं धन्य हो गया,
जन्मों की प्यास थी जो,
मैं सम्पन्न हो गया।

दुःख में तड़प रहा था,
प्रभु मुद्दतों से मैं,
इक आपका सहारा,
साकार हो गया,
तेरी शरण मे आके,
मैं धन्य हो गया,
जन्मों की प्यास थी जो,
मैं सम्पन्न हो गया।

करना कभी ना दूर प्रभु,
चरणों से आप,
चरणों के ही सहारे,
मैं भव पार हो गया,
तेरी शरण मे आके,
मैं धन्य हो गया हूं,
जन्मों की प्यास थी जो,
मैं सम्पन्न हो गया।

तेरी शरण में आके,
मैं धन्य हो गया,
जन्मों की प्यास थी जो,
मैं सम्पन्न हो गया,
तेरी शरण मे आके,
मैं धन्य हो गया।

Teri Sharan Mein Aake main Dhany Ho Gaya।। Bhajan Sankirtan।।

जब जीवन की राहें थकान से भर जाती हैं और मन बार-बार भटकता है, तब एक दिन ऐसा आता है जब भक्त प्रभु के चरणों में सिर झुका देता है। तभी भीतर से आवाज़ आती है — “आज तेरी शरण में आकर, मैं सचमुच धन्य हो गया।” कई जन्मों से जो प्यास मन में पल रही थी, वह जैसे अब तृप्त हो गई। प्रभु को ‘अपना’ कहने का आनंद और मानसिक संपन्नता ही सबसे बड़ी दौलत बन जाती है।
 
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