तू दयाल दीन हो तू दानी हो भिखारी

तू दयाल दीन हो तू दानी हो भिखारी भजन

 
तू दयाल दीन हो तू दानी हो भिखारी भजन

तू दयाल दीन हो,
तू दानी हो भिखारी,
हो प्रसिद्ध पातकी,
तू पाप पुंज हारी।

नाथ तू अनाथ को,
अनाथ कौन मोसो,
मो सामान आरत नाही,
आरती हर तोसो।

ब्रह्मा तू जीव हो,
तू ठाकुर हो चेरो,
तात मात गुरु सखा,
तू सब विधि ही मेरो।

तोही मोहि नाते अनेक,
मानिए जो भावे,
ज्यो त्यों तुलसी कृपालु,
चरण शरण पावे।

Tu Dayal Deen - Tulsidas Bhajan

ईश्वर का संबंध केवल एक भूमिका तक सीमित नहीं; वे ब्रह्मा के जैसे सृष्टिकर्ता हैं, जीव का स्वयं मार्गदर्शक हैं, ठाकुर के जैसे संरक्षक, चेरो (सेवक) के जैसे प्रेमी, पिता के जैसे पोषक, माता के जैसे पालनहार, गुरु के जैसे ज्ञानदाता और सखा के जैसे सहचर हैं—हर रूप में वही हैं। This is a bhajan (Hindu devotional song), called "Tu Dayal Deen". It is written by the 16th century saint Tulsidas. It is sung by Chandrakantha Courtney.
 
गोस्वामी तुलसीदास की भक्ति और साहित्यिक योगदान ने भारतीय संस्कृति और धर्म को एक नई दिशा दी, जो भगवान राम के आदर्शों को जनसामान्य के हृदय तक ले गई। उनकी रचनाएँ, विशेष रूप से 'रामचरितमानस', न केवल भक्ति का स्रोत हैं, बल्कि सामाजिक समरसता और नैतिक मूल्यों का भी प्रतीक हैं। अवधी में रचित यह महाकाव्य भगवान राम के जीवन को इतनी सरलता और भक्ति भाव से प्रस्तुत करता है कि वह हर वर्ग के लिए सुलभ हो गया। तुलसीदास ने राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में स्थापित करते हुए मानवीय जीवन के लिए आदर्श आचरण का मार्ग दिखाया, जो आज भी प्रासंगिक है। उनकी रचनाओं में भक्ति के साथ-साथ जीवन दर्शन, करुणा और सामाजिक सुधार का संदेश भी निहित है, जो लोगों को सत्य, धर्म और प्रेम की ओर प्रेरित करता है। 
 
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