अन्नकूट कोटिक भांतनसों Annkut Kotik Bhantanso
अन्नकूट कोटिक भांतनसों,
भोजन करत गोपाल,
आपही कहत तात अपनेसों,
गिरि मूरति देखो ततकाल।
सुरपति से सेवक इनहीके,
शिवविरंचि गुण गावे,
इनहींतें अष्ट महा सिद्धि,
नवनिधि परम पदारथ पावे।
हम गृह बसत गोधन बन,
चारत गोधनही कुलदेव,
इनें छांडजो करत यज्ञ,
विधि मानो भीतको लेव।
यहसुन आनंदे व्रजवासी,
आनंद दुंदुभी बाजे,
घरघर गोपी मंगलगावें,
गोकुल आन बिराजे।
एक नाचत एक करत कुलाहल,
एक देत करतारी,
बनिता वृंद बाँयनों वांटत,
गुंजा पुआ सुहारी।
तबही इंद्र आयुस दीयो,
मेघन जाय प्रलयके बरखो,
यह अपमान कियो धों कोने,
ताहि प्रकटव्हे परखो।
सातद्योस जल शिला सहस्रन,
महा उपद्रव कीनों,
नंदादिक विस्मित चितवत,
सब तब गिरवर कर लीनों।
शक्र सकुच सुरभी संग लायो,
तजी आपनी टेक,
गहे चरण गोविंद नाम कहि,
कियो आप अभिषेक।
महेरि मुदित वर वसन मगाये,
बोलबोल सब ग्वालिन दीने,
प्रभु कल्याण गिरिधर युगयुग,
यों भक्त अभय पदकीने।
भोजन करत गोपाल,
आपही कहत तात अपनेसों,
गिरि मूरति देखो ततकाल।
सुरपति से सेवक इनहीके,
शिवविरंचि गुण गावे,
इनहींतें अष्ट महा सिद्धि,
नवनिधि परम पदारथ पावे।
हम गृह बसत गोधन बन,
चारत गोधनही कुलदेव,
इनें छांडजो करत यज्ञ,
विधि मानो भीतको लेव।
यहसुन आनंदे व्रजवासी,
आनंद दुंदुभी बाजे,
घरघर गोपी मंगलगावें,
गोकुल आन बिराजे।
एक नाचत एक करत कुलाहल,
एक देत करतारी,
बनिता वृंद बाँयनों वांटत,
गुंजा पुआ सुहारी।
तबही इंद्र आयुस दीयो,
मेघन जाय प्रलयके बरखो,
यह अपमान कियो धों कोने,
ताहि प्रकटव्हे परखो।
सातद्योस जल शिला सहस्रन,
महा उपद्रव कीनों,
नंदादिक विस्मित चितवत,
सब तब गिरवर कर लीनों।
शक्र सकुच सुरभी संग लायो,
तजी आपनी टेक,
गहे चरण गोविंद नाम कहि,
कियो आप अभिषेक।
महेरि मुदित वर वसन मगाये,
बोलबोल सब ग्वालिन दीने,
प्रभु कल्याण गिरिधर युगयुग,
यों भक्त अभय पदकीने।
Annakut Ke Kirtan - Annkut koti Bhatan So
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