आये नहीं घनश्याम जो साड़ी सर से सरकी द्रोपदी

आये नहीं घनश्याम जो साड़ी सर से सरकी द्रोपदी

आए नहीं घनश्याम,
जो साड़ी सर से सरकी,
सर की सरकी पाँचों वर की,
आस लगी है मोहे गिरधर की,
आए नहीं घनश्याम,
जो साड़ी सर से सरकी।।

पाँचों पति सभा में बैठे,
जैसे बैठी नारी,
द्रोणाचार्य, पितामह बैठे,
नीचे गर्दन डारी,
अपनों ने मुख मोड़ लिया है,
मोहे केवल आस तिहारी,
आए नहीं घनश्याम,
जो साड़ी सर से सरकी।।

याद करो उस दिन की मोहन,
अंगुली कटी तिहारी,
फाड़ के साड़ी अपने तन की,
बांधी तुरंत मुरारी,
बेगे पधारो नाथ हरि तुम,
लुट न जाए लाज हमारी,
आए नहीं घनश्याम,
जो साड़ी सर से सरकी।।

भरी सभा में एकली ठाड़ी,
मैं किस्मत की मारी,
दुशासन मेरी साड़ी खींचे,
हुई शरम से मैं पानी,
पूर्ण रूप से किया समर्पण,
आओ न आओ अब मर्ज़ी तिहारी,
आए नहीं घनश्याम,
जो साड़ी सर से सरकी।।

आए नहीं घनश्याम,
जो साड़ी सर से सरकी,
सर की सरकी पाँचों वर की,
आस लगी है मोहे गिरधर की,
आए नहीं घनश्याम,
जो साड़ी सर से सरकी।।


Sar Ki Sarki | आये नहीं घनश्याम जो साडी सर से सरकी | Krishna Bhajan | Sangeeta Rathore | full HD

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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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