कबीर गुरु कै भावते दुरहि ते दीसन्त हिंदी मीनिंग

कबीर गुरु कै भावते दुरहि ते दीसन्त हिंदी मीनिंग Kabir Guru Ke Bhavate Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth/Bhavarth Sahit

कबीर गुरु कै भावते, दुरहि ते दीसन्त |
तन छीना मन अनमना, जग से रूठि फिरंत ||

कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi

स दोहे में गुरु कबीर ने सतगुरु ज्ञान के बिरही के लक्षणों को बताया है। कबीर साहेब कहते हैं कि सतगुरु ज्ञान के बिरही अर्थात् सत्य-ज्ञान से विमुख व्यक्ति का शरीर कृश और मन व्याकुल रहता है। वह जगत में उदास होकर विचरण करता है। वह दूर से ही दिखने लगता है. उसका तन मन क्षीण होने लगता है और वह जगत से रूठा फिरता है. सत्य-ज्ञान से विमुख व्यक्ति का जीवन व्यर्थ है। 
 
कबीर गुरु कै भावते दुरहि ते दीसन्त हिंदी मीनिंग Kabir Guru Ke Bhavate Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth/Bhavarth Sahit

भक्ति में लीन आत्मा संसार से विमुख हो जाती है और अपना पूर्ण चित्त हरी की भक्ति में ही लगाता है। 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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