श्री गुरु पादुका स्तोत्रम् सम्पूर्ण भजन

श्री गुरु पादुका स्तोत्रम् सम्पूर्ण भजन Shri Guru Paduka Stotram


श्री गुरु पादुका स्तोत्रम् Shri Guru Paduka Stotram Bhajan Lyrics

अनंत-संसार समुद्र-तार,
नौकायिताभ्यां गुरुभक्तिदाभ्याम्,
वैराग्य साम्राज्यद पूजनाभ्यां,
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम्।

कवित्व वाराशिनिशाकराभ्यां,
दौर्भाग्यदावांबुदमालिकाभ्याम्,
दूरिकृतानम्र विपत्ततिभ्यां,
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम्।

नता ययोः श्रीपतितां समीयुः,
कदाचिद-प्याशु दरिद्रवर्याः,
मूकाश्च वाचस्पतितां हि ताभ्यां,
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम्।

नालीकनीकाश पदाहृताभ्यां,
नानाविमोहादि-निवारिकाभ्यां,
नमज्जनाभीष्टततिप्रदाभ्यां,
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम्।

नृपालि मौलिव्रजरत्नकांति,
सरिद्विराजत् झषकन्यकाभ्यां,
नृपत्वदाभ्यां नतलोक पंक्ते:,
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम्।

पापांधकारार्क परंपराभ्यां,
तापत्रयाहींद्र खगेश्र्वराभ्यां,
जाड्याब्धि संशोषण वाडवाभ्यां,
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम्।

शमादिषट्क प्रदवैभवाभ्यां,
समाधिदान व्रतदीक्षिताभ्यां,
रमाधवांध्रिस्थिरभक्तिदाभ्यां,
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम्।

स्वार्चापराणां अखिलेष्टदाभ्यां,
स्वाहासहायाक्षधुरंधराभ्यां,
स्वांताच्छभावप्रदपूजनाभ्यां,
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम्।

कामादिसर्प व्रजगारुडाभ्यां,
विवेकवैराग्य निधिप्रदाभ्यां,
बोधप्रदाभ्यां दृतमोक्षदाभ्यां,
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम्।


गुरु पादुका स्तोत्रम् | Guru Paduka Stotram | Shubhra Agnihotri | Chandrajit Kamble | Guru Bhajan

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अनन्त-संसार समुद्र-तार, नौकायिताभ्यां गुरुभक्तिदाभ्याम्, 
वैराग्य साम्राज्यद पूजनाभ्यां, नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम्।

अर्थ: उन श्री गुरुदेव की पादुकाओं को बार-बार नमस्कार है, जो अनंत संसार रूपी सागर को पार कराने वाली नाव के समान हैं। जो (भक्तों को) गुरु के प्रति सच्ची भक्ति प्रदान करती हैं और जिनकी पूजा करने से वैराग्य का साम्राज्य प्राप्त होता है।

श्लोक: कवित्व वाराशिनिशाकराभ्यां, 
दौर्भाग्यदावांबुदमालिकाभ्यां, दूरिकृतानम्र विपत्ततिभ्यां, 
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम्।

अर्थ: उन श्री गुरु पादुकाओं को नमस्कार है, जो कविता (ज्ञान) के समुद्र को प्रदीप्त करने के लिए चंद्रमा के समान हैं। जो (भक्तों के) दुर्भाग्य रूपी दावानल (जंगल की आग) को बुझाने के लिए बादलों की माला के समान हैं। और जो विनम्र भक्तों की विपत्तियों के समूह को दूर कर देती हैं।

नता ययोः श्रीपतितां समीयुः, कदाचिद-प्याशु दरिद्रवर्याः, 
मूकाश्च वाचस्पतितां हि ताभ्यां, नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम्।

उन श्री गुरु पादुकाओं को नमस्कार है, जिनके सामने झुकने (प्रणाम करने) मात्र से ही अत्यधिक दरिद्र व्यक्ति भी तुरंत धनवान (धन-संपत्ति के स्वामी) बन जाते हैं। और जिनके प्रभाव से मूक (गूंगा) व्यक्ति भी बृहस्पति के समान बोलने की क्षमता प्राप्त कर लेता है।

श्लोक: नालीकनीकाश पदाहृताभ्यां, 
नानाविमोहादि-निवारिकाभ्यां, नमज्जनाभीष्टततिप्रदाभ्यां, 
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम्।
उन श्री गुरु पादुकाओं को नमस्कार है, जो कमल के समान कोमल चरणों से लाई गई हैं (अर्थात् गुरुदेव के चरण कमलों से युक्त हैं)। जो भक्तों के अनेक प्रकार के भ्रम और मोह आदि को दूर करने वाली हैं, और जो प्रणाम करने वाले भक्तों को उनकी सभी इच्छाओं का समूह प्रदान करती हैं।

नृपालि मौलिव्रजरत्नकांति, सरिद्विराजत् झषकन्यकाभ्यां, 
नृपत्वदाभ्यां नतलोक पंक्ते:, नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम्।
अर्थ: उन श्री गुरु पादुकाओं को नमस्कार है, जो राजाओं के मुकुटों में जड़े रत्नों की चमक से सुशोभित नदियों में रहने वाली मत्स्यकन्याओं (मछली/आभूषण) के समान हैं। और जो प्रणाम करने वाले मनुष्यों के समूह को राजा का पद (नेतृत्व) प्रदान करने वाली हैं। (सरल अर्थ: जो रत्नों की तरह चमकदार हैं, और भक्तों को सम्मान और नेतृत्व प्रदान करती हैं।)

श्लोक: पापांधकारार्क परंपराभ्यां, 
तापत्रयाहींद्र खगेश्र्वराभ्यां, 
जाड्याब्धि संशोषण वाडवाभ्यां, 
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम्।
अर्थ: उन श्री गुरु पादुकाओं को नमस्कार है, जो पाप रूपी अंधकार को नष्ट करने के लिए सूर्य की किरणों के समूह के समान हैं। जो तीनों ताप (आध्यात्मिक, आधिभौतिक, आधिदैविक) रूपी महासर्पों के लिए गरुड़ के समान हैं। और जो अज्ञान (जड़ता) रूपी सागर को सुखाने के लिए बड़वानल (समुद्र की अग्नि) के समान हैं।

श्लोक: शमादिषट्क प्रदवैभवाभ्यां, समाधिदान व्रतदीक्षिताभ्यां, 
रमाधवांध्रिस्थिरभक्तिदाभ्यां, नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम्।
अर्थ: उन श्री गुरु पादुकाओं को नमस्कार है, जो शम (मन को वश में करना) आदि छः साधनों को प्रदान करने वाला ऐश्वर्य रखती हैं। जो भक्तों को समाधि (एकाग्रता) प्रदान करने के व्रत से दीक्षित हैं, और जो (भक्तों को) भगवान विष्णु (रमाधव) के चरणों में स्थिर भक्ति प्रदान करती हैं।

श्लोक: स्वार्चापराणां अखिलेष्टदाभ्यां, स्वाहासहायाक्षधुरंधराभ्यां,
 स्वांताच्छभावप्रदपूजनाभ्यां, नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम्।
अर्थ: उन श्री गुरु पादुकाओं को नमस्कार है, जो अपनी पूजा करने वाले भक्तों को सभी इच्छाएं प्रदान करने वाली हैं। जो (यज्ञ में) स्वाहा और स्वधा से युक्त श्रेष्ठ (अक्षधुरंधरा) यज्ञों को धारण करने वाली हैं, और जिनकी पूजा मन की पवित्रता (निर्मल भाव) प्रदान करती है। (सरल अर्थ: जो पूजकों को सब कुछ देती हैं और मन को शुद्ध करती हैं।)

श्लोक: कामादिसर्प व्रजगारुडाभ्यां, विवेकवैराग्य निधिप्रदाभ्यां, 
बोधप्रदाभ्यां दृतमोक्षदाभ्यां, नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम्।

अर्थ: उन श्री गुरु पादुकाओं को नमस्कार है, जो काम, क्रोध आदि विकारों रूपी साँपों के समूह के लिए गरुड़ के समान हैं (अर्थात् उन्हें नष्ट कर देती हैं)। जो (भक्तों को) विवेक (सही-गलत का ज्ञान) और वैराग्य (विरक्ति) का खजाना प्रदान करती हैं, और जो ज्ञान (बोध) प्रदान करके शीघ्र ही मोक्ष भी देती हैं।
 
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