एक हरि को छोड़ किसी की Ek Hari Ko Chhod Bhajan Lyrics
एक हरि को छोड़ किसी की,
चलती नहीं है मनमानी,
एक हरि को छोड़ किसी की,
चलती नहीं है मनमानी।
लंकापति रावण योद्धा ने,
सीता जी का हरण किया,
इक लख पूत सवा लख नाती,
होकर कुल का नाश किया,
धान भरी वो सोने की लंका,
हो गई पल में कुल्धानि,
एक हरि को छोड़ किसी की,
चलती नहीं है मनमानी।
मथुरा के उस कंस राजा ने,
बहन देवकी को त्रास दिया,
सारे पुत्र मार दिये उसने,
तब प्रभु ने अवतार लिया,
मार गिराया उस पापी को,
था मथुरा में बलशाली,
एक हरि को छोड़ किसी की,
चलती नहीं है मनमानी।
भस्मासुर ने करी तपस्या,
शंकर से वरदान लिया,
शंकर जी ने खुश होकर उसे,
शक्ति का वरदान दिया,
भस्म चला करने शंकर को,
शंकर भागे हरिदानी,
एक हरि को छोड़ किसी की,
चलती नहीं है मनमानी।
उसे मारने श्री हरि ने,
सुंदरी का रुप लिया,
जैसा जैसा नाचे मोहन,
वैसा वैसा नाच किया,
अपने हाथ को सर पर रखकर,
भस्म हुआ वो अभिमानी,
एक हरि को छोड़ किसी की,
चलती नहीं है मनमानी।
सुनो सुनो ऐ दुनिया वालो,
पल भर में मिट जाओगे,
गुरु चरणों मे जल्दी जाओ,
हरि चरणों को पाओगे,
भजनानंद कहे हरि भज लो,
दो दिन की है जिंदगानी,
एक हरि को छोड़ किसी की,
चलती नहीं है मनमानी।
Ek Hari Ko Chod - एक हरी को छोड़ | Gujarati Garba Bhakti 2018 | Manish Tiwari |
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