
भोले तेरी भक्ति का अपना ही
इस पद में कबीर साहेब ईश्वर के विषय में कथन देते हैं की तुम मुझे कहाँ पर ढूंढ रहे हो ? मैं तो तुम्हारे ही पास में हूँ। ना तो मैं देवल में, ना मैं मस्जिद में और नाहीं तो मैं काबा और कैलाश में ही हूँ। मैं किसी क्रिया कर्म में नहीं हूँ और ना ही मैं योग और बैराग्य में हूँ। मैं (ईश्वर) तो सर्वश्व ही व्याप्त हूँ, यदि कोई हृदय से खोजी स्वभाव का होता है तो उसे तुरंत ही ईश्वर प्राप्त हो जाता है। कबीर साहेब कहते हैं की हे साधो, ईश्वर तो स्वास स्वास में ही व्याप्त है।