ना जानै साहब कैसा है हिंदी मीनिंग Na Jane Sahab Kaisa Meaning : Kabir Ke Pad Hindi arth/Bhavarth Sahit
ना जानै साहब कैसा है।
मुल्ला होकर बाँग जो दैवे,
क्या तेरा साहब बहरा है।
कीड़ी के पग नेवर बाजे
सो भी साहब सुनता है।
माला फेरी तिलक लगाया,
लंबी जटा बढ़ाता है।
अंतर तेरे कुफर-कटारी,
यो नहिं साहब मिलता है।
कबीर साहेब ईश्वर के विषय में सन्देश देते हैं की तुम्हारा ईश्वर कैसा है, पता नहीं है। ना जाने तुम्हारा साहेब कैसा है। मुल्ला होकर जो तू बांग देते हो तो तेरा खुदा क्या बहरा है ? वह तो सर्वत्र व्याप्त है और वह तो कीड़े / चींटी के पाँव में बजने वाली पाजेब की आवाज को भी सुन लेता है। तुम माला फिराते हो और तिलक लगाते हो ? लम्बी जटाओं को रखते हो ? तुम्हारे अंदर तो कुफर कटार है, लेकिन ऐसे साहेब की / ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती है। कबीर की इस साखी में धार्मिक आडंबरों और अंधविश्वासों की आलोचना की गई है। पहली पंक्ति में कबीर पूछते हैं कि मुल्ला होकर जो बाँग देता है तो उसका साहब (ईश्वर) बहरा है क्या? कबीर का मतलब है कि अगर ईश्वर बहरा है तो वह मुल्ला की बाँग नहीं सुन सकता। लेकिन कबीर कहते हैं कि ईश्वर तो इतना शक्तिशाली है कि वह कीड़ों-मकोड़ों के चलने की आवाज़ भी सुन सकता है।आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
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