सबकूँ बूझत मैं फिरौं रहण कहै नहीं कोइ मीनिंग Sabaku Bujhat Main Firo Meaning Kabir Dohe

सबकूँ बूझत मैं फिरौं रहण कहै नहीं कोइ मीनिंग Sabaku Bujhat Main Firo Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit (Hindi Meaning/Hindi Bhavarth)

सबकूँ बूझत मैं फिरौं, रहण कहै नहीं कोइ।
प्रीति न जोड़ी राम सूँ, रहण कहाँ थैं होइ॥
Sabku Bujhat Main Phiro, Rahan Kahe Nahi Koi,
Preeti Na Jodi Raam Su, Rahan Kaha The Hoi.

सबकूँ : सबको, सभी को.
बूझत : पूछती.
मैं फिरौं : मैं फिरता हूँ.
रहण : व्यवहार, अमरता के विषय में रहने की बात, रहस्य की बात.
कहै : कोई नहीं बताता है.
नहीं कोइ : कोई नहीं बताता है.
प्रीति न जोड़ी : प्रीती नहीं जोड़ी, मन नहीं मिलाया.
राम सूँ : राम से.
रहण कहाँ व्यवहार कैसे समझ में आएगा.
थैं : से.
होइ : होगा (व्यवहार कैसे होगा.)

जीवात्मा सभी से रहस्य की बात पूछती है लेकिन कोई भी उसे रहस्य की बात नहीं बताता है. इश्वर के साथ बिताए रहस्य की बात कोई भी नहीं बताता है. जब जीवात्मा ने अपने मालिक राम से प्रीती ही नहीं जोड़ी तो उसका रहन उस परमात्मा के साथ कैसे हो सकता है. इस साखी का मूल भाव है की बिना प्रेम अमरता को प्राप्त नहीं किया जा सकता है और इश्वर के रहस्य का भाव ऐसा है जिसे स्वंय ही ज्ञात करना पड़ता है, कोई उसके बारे में आपको बता नहीं सकता है, इसे स्वंय ही प्राप्त करना पड़ता है.
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