रहो संसार में तुम पानी
रहो संसार में तुम पानी,
और कमल की तरह,
करके सत्कर्म,
बुजुर्गों से दुआयें ले लो,
रहो संसार में तुम पानी,
और कमल की तरह।
है पतंग दूर कहीं,
डोर उनके हाथों में,
उनका ही कर्ज है तेरी,
हर एक सांसों में,
उनकी मर्जी जब वो चाहे,
इसे वापस ले ले,
रहो संसार में तुम पानी,
और कमल की तरह।
पा के जीवन में खुशी,
हर्ष मनाता क्या है,
दुख की परछाई को तू,
देख के डर जाता है,
जबकि सुख दुख पे नहीं,
तेरा कोई जोर चले,
रहो संसार में तुम पानी,
और कमल की तरह।
पा के नर तन तू,
अपने को समझता क्या है,
लोग छूने से डरेंगें,
अकड़ता क्या है,
चार दिन के लिए,
है रंग बिरंगें मेले,
रहो संसार में तुम पानी,
और कमल की तरह।
चैन से सोये सभी,
वो ना कभी सोता है,
उनकी मर्जी से ही,
हर काम यहां होता है,
अपने ही कर्मों से मानव,
यहां सुख दुख झेले,
रहो संसार में तुम पानी,
और कमल की तरह।
रहो संसार मे तू पानी और कमल की तरह (श्री फणीभूषण चौधरी)By राजीव सिंह
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