पाँच मिरगला पच्चीस मिरगली असली तीन छुन्कारा

पाँच मिरगला पच्चीस मिरगली असली तीन छुन्कारा

पांच मिरगला पच्चीस मिरगली,
जतन बिना मिरगा ने,
खेत उजाड़्या रे,
हाँ रे, तूं तो सुण रे,
मिरग खेती वाला रे।।

पांच मिरगला पच्चीस मिरगली,
असली तीन छुन्कारा,
अपने-अपने रस का भोगी,
चरता है न्यारा रे, न्यारा रे,
जतन बिना मिरगा ने,
खेत उजाड़्या रे।।

मन रे मिरगले ने किस विध रोकूं,
बिडरत नाय बिडारया,
जोगी, जंगम, जती, सेवड़ा,
पंडित पढ़-पढ़ हारया रे,
जतन बिना मिरगा ने,
खेत उजाड़्या रे।।

आम भी खाग्यो, अमली भी खाग्यो,
खा गयो केसर क्यारा,
काया नगरिये में कछुं न छो़ड्यो,
ऐसो ही मिरग बिडारया रे,
जतन बिना मिरगा ने,
खेत उजाड़्या रे।।

शील-संतोष की बाड़ संजोले,
ध्यान गुरु रखवाला,
प्रेम पार की बाण संजोले,
ज्ञान-ध्यान से ही मारया रे,
जतन बिना मिरगा ने,
खेत उजाड़्या रे।।

नाथ गुलाब मिल्या गुरु पूरा,
ऐसा मिरग बताया,
भानीनाथ शरण सतगुरु की,
बेगा ही बेग संभाल्या रे,
जतन बिना मिरगा ने,
खेत उजाड़्या रे।।

पांच मिरगला पच्चीस मिरगली,
असली तीन छुन्कारा,
अपने-अपने रस का भोगी,
चरता है न्यारा रे, न्यारा रे,
जतन बिना मिरगा ने,
खेत उजाड़्या रे।।


Panch Miragla Pachis Miragli by Shree Navratan giri ji Maharaj

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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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