बेगो आजा बलमा रे थारी ओल्यु आवे

बेगो आजा बलमा रे थारी ओल्यु आवे राजस्थानी सोंग


बेगो आजा बलमा रे थारी ओल्यु आवे लिरिक्स Bego Aaja Balama Re Bhajan Lyrics

सुनो पड़ो रे म्हारो आंगणों थारे बिना,
बेगो आजा बलमा रे थारी ओल्युं आवे,
बेगो आजा बलमा रे थारी ओल्युं आवे।

निरखु थारी बाटड़ी कद आवोला,
बेगो आजा बलमा रे थारी ओल्युं आवे,
बेगो आजा बलमा रे थारी ओल्युं आवे।

परदेश गया नी बावड़्या थे,
तीज तींवारा नी बावड़्या थे,
गोरी रो जोबण फीको पड़ग्यो,
सावण बीत्यो बीत्यो रे भादवो।

धाई रे धाई थारी नौकरी कद आवोला,
धाई रे धाई थारी नौकरी कद आवोला,
बेगो आजा बलमा रे थारी ओल्युं आवे,
बेगो आजा बलमा रे थारी ओल्युं आवे।

रात्यूं जोवे बाट गौरडी,
कर सोला सिणगार गौरडी,
थारे बिना यो सिंगार भी फीको,
फीको पड़ग्यो रूप सोहवानो।

थाने बुलावे थारी गोरडी कद आवोला,
थाने बुलावे थारी गोरडी कद आवोला,
बेगो आजा बलमा रे थारी ओल्युं आवे,
बेगो आजा बलमा रे थारी ओल्युं आवे।

सुनो पड़ो रे म्हारो आंगणों थारे बिना,
बना बग आजा बाल मारे थारी ओ,
बेगो आजा बलमा रे थारी ओल्युं आवे।

निरखुं थारी बाटड़ी कद आवोला,
बेगो आजा बलमा रे थारी ओल्युं आवे,
बेगो आजा बलमा रे थारी ओल्युं आवे।


ओल्यू आवे | Olyu Aave | Ajit Singh Tanwar, Manisha Kanwar | Nizam Khan #ajitbbp #rajasthanisong


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Presenting latest Rajasthani video song 2024 "OLYU AAVE" singing by Ajit Singh Tanwar.
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Song – OLYU AAVE
Singer – Ajit Singh Tanwar 
Artists – Manisha Kanwar, Ajit Singh Tanwar, Bhagya Sharma
Lyrics- Ajit Singh Tanwar
Music by- Nizam Khan
Makeup- Gautam Faujdar
Story & Concept & Direction – Ashish Singh Chauhan
Dop, Edit & Post Production -Dharmendra Rao 
 
प्रियतम की अनुपस्थिति में हृदय की व्याकुलता और विरह की तीव्रता जीवन के हर रंग को फीका कर देती है। यह भावना उस गहरी प्रेममयी पुकार को दर्शाती है, जहाँ आत्मा अपने प्रिय के बिना अधूरी और उदास महसूस करती है। यह विरह केवल शारीरिक दूरी का नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक और भावनात्मक रिक्तता का प्रतीक है, जो जीवन के हर सौंदर्य को मलिन कर देता है। प्रिय की प्रतीक्षा में बिताए पल, चाहे वह दिन हो या रात, एक अनंत काल जैसे प्रतीत होते हैं, और यह आकांक्षा कि वह शीघ्र लौट आए, हृदय को एक गहरी तड़प से भर देती है। यह तड़प उस प्रेम की शुद्धता को दर्शाती है, जो सांसारिक बंधनों से परे, आत्मा की गहराइयों में बसती है।

सज-सज्जा, सौंदर्य और जीवन के उत्सव भी प्रिय के बिना अर्थहीन हो जाते हैं। यह भावना उस गहरे प्रेम और समर्पण को उजागर करती है, जहाँ हर सजावट, हर श्रृंगार केवल प्रियतम के लिए होता है। प्रिय की अनुपस्थिति में समय जैसे थम सा जाता है, और ऋतुएँ भी अपनी रंगत खो देती हैं। यह पुकार केवल प्रिय के लौटने की नहीं, बल्कि उस प्रेम की पूर्णता की कामना है, जो जीवन को फिर से रंगों से सराबोर कर दे। यह भावना उस अनन्य प्रेम का प्रतीक है, जो दूरी, समय या परिस्थितियों के बावजूद कभी कम नहीं होता, बल्कि प्रतीक्षा और विश्वास के साथ और गहरा हो जाता है।
 
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