ये दान धर्म करना हमें तुमने सिखाया भजन लिरिक्स Ye Daan Dharm Karna Bhajan Lyrics

 ये दान धर्म करना हमें तुमने सिखाया भजन लिरिक्स Ye Daan Dharm Karna Bhajan Lyrics


ये दान धर्म करना हमें तुमने सिखाया भजन लिरिक्स Ye Daan Dharm Karna Bhajan Lyrics
 
तेरे आचरण को ही हमने अपनाया है।।
ये दान धर्म करना हमें तुमने सिखाया है।।

एक रुपया और एक ईंट सिद्धांत बनाया था।।
सब एक समान जग में संदेश फैलाया था।।
इस अग्रवंश का जग में तूने नाम बढ़ाया है।।

माता महा लक्ष्मी ने तुम्हें बेटा मान लिया।।
तेरे कुल पर मेरी कृपा रहे ऐसा वरदान दिया।।
वरदान के कारण ही सौभाग्य ये पाया है।।

बस एक तमन्ना है जब फिर से जन्म मिले।।
इस अग्रवंश में ही हम बनकर फूल खिले।।
अब तक जीवन जैसे सेवा में बिताया है।।

राजेंद्र अग्रवाल बस इतनी आस करे।।
कुण्डली में धाम बने जो हम प्रयास करें।।
प्रिंस जैन ने भजनों का एक हार बनाया है।।


ये दान धर्म करना हमें तुमने सिखाया है (अग्रसेन धाम कुण्डली) Prince, Shubham Narela | Aggarsen Bhajan


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Lyrics
Tere aacharan ko hi humne apnaya hai।।
Ye daan dharm karna hume tumne sikhaya hai।।

Ek rupaya aur ek eent siddhant banaya tha।।
Sab ek samaan jag mein sandesh phailaya tha।।
Is agravansh ka jag mein tune naam badhaya hai।।

Mata Maha Lakshmi ne tumhe beta maan liya।।
Tere kul par meri kripa rahe aisa vardaan diya।।
Vardaan ke kaaran hi saubhagya ye paya hai।।

Bas ek tamanna hai jab fir se janm mile।।
Is agravansh mein hi hum bankar phool khile।।
Ab tak jeevan jaise seva mein bitaaya hai।।

Rajendra Agarwal bas itni aas kare।।
Kundali mein dhaam bane jo hum prayas karein।।
Prince Jain ne bhajanon ka ek haar banaya hai।। 

ये दान धर्म करना हमें तुमने सिखाया है (अग्रसेन धाम कुण्डली)
Singer :- Prince Shubham Narela
Lyrics :- Prince Jain
Music :- PRINCE JAIN
Label : Bhajan Kirtan Sonotek
 
ये दान धर्म करना हमें तुमने सिखाया भजन लिरिक्स Ye Daan Dharm Karna Bhajan Lyrics
 
 
यह भी जानिये-
  • महाराज जी का जन्म: महाराजा अग्रसेन का जन्म सूर्यवंशीय महाराजा वल्लभ सेन के अंतिम काल में, लगभग 5143 वर्ष पूर्व हुआ था।
  • क्षत्रिय कुल: वे क्षत्रिय कुल से संबंधित थे और अग्रोदय गणराज्य के महाराजा थे।
  • महाभारत काल: उनका जीवन महाभारत काल में था, और वे भगवान कृष्ण के समकालीन थे।
  • महान कार्य: उन्हें वेदिक समाजवाद के प्रर्वतक और युग पुरुष माना जाता है।
  • राजकुमार: 15 वर्ष की आयु में, अग्रसेन जी ने पांडवों के पक्ष से महाभारत युद्ध लड़ा था।
  • धर्म और अहिंसा: महाराजा अग्रसेन ने अहिंसा धर्म को अपनाया और अपने राज्य में हिंसा का विरोध किया।
  • प्रजा वत्सलता: वे अपने प्रजा के प्रति अत्यंत दयालु और करुणानिधि राजा थे, जिसमें कोई दुखी नहीं था।
  • व्यापार और उद्योग: महाराजा अग्रसेन ने कृषि, व्यापार, और उद्योग के विकास के लिए नियम बनाए।
  • स्वयंवर: उन्होंने राजा नागराज कुमुद की बेटी माधवी के स्वयंवर में भाग लिया और उन्हें अपना जीवनसाथी बनाया।
  • इंद्र से टकराव: उनके विवाह के कारण इंद्र ने उनके राज्य में अकाल लाने के लिए वर्षा रोक दी, जिससे अग्रसेन ने इंद्र के खिलाफ युद्ध छेड़ा।
  • तपस्या: उन्होंने प्रजा की खुशहाली के लिए काशी में भगवान शिव की घोर तपस्या की और माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्त की।
  • अग्रोदक गणराज्य की स्थापना: महाराजा अग्रसेन ने अपने नए राज्य का नाम अग्रोदय रखा और अग्रोहा को उसकी राजधानी बनाया।
  • समाजवाद का अग्रदूत: उन्होंने नगर में बसने वाले हर नए परिवार को एक सिक्का और एक ईंट देने का नियम बनाया, ताकि वे अपने लिए निवास स्थान बना सकें।
  • अठारह यज्ञ: महाराजा अग्रसेन ने 18 गोत्र की स्थापना की, जो 18 ऋषियों के नाम पर आधारित है।
  • पशुबलि का विरोध: अठारवे यज्ञ में उन्होंने पशुबलि का विरोध किया और राज्य में किसी भी प्रकार की हिंसा को रोकने का निर्णय लिया।
  • गोत्रों की संख्या: आज के अग्रवाल समाज में साढ़े सत्रह गोत्र प्रचलित हैं।
  • धर्म-युद्ध: इंद्र के साथ हुए धर्म-युद्ध में अग्रसेन ने नारद ऋषि द्वारा मध्यस्थता के माध्यम से शांति स्थापित की।
  • धर्म और न्याय: उन्होंने अपने राज्य में सत्य, अहिंसा, न्याय, नीति, और समानता के सिद्धांतों को लागू किया।
  • अग्रसेन की बावली: उन्होंने दिल्ली में अग्रसेन की बावली का निर्माण करवाया, जो आज भी एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है।
  • मृत्यु: महाराजा अग्रसेन का निधन 637 AD में हुआ, लेकिन उनकी शिक्षाएँ और योगदान आज भी जीवित हैं।
  • महाराजा अग्रसेन, प्रतापनगर के राजा वल्लभ के सबसे बड़े पुत्र थे. 
  • कहा जाता है कि उनका जन्म द्वापर युग के आखिरी चरण में हुआ था और वे श्रीराम की 34वीं पीढ़ी के वंशज रहे थे. 
  • वे उत्तर भारत में अग्रोहा नामक व्यापारियों के शहर के स्थापक हैं और वे यज्ञों में जानवरों का वध करने के लिए वर्जित घोषित किया.
  • वे समाजवाद के अग्रदूत थे और उन्होंने अपने राज्य में सच्चे समाजवाद की स्थापना की. 
  • वे समानता के प्रति समर्पित थे और पुरानी संकीर्ण विचारधारा का विरोध करते थे. 
  • वे धार्मिक, शांति दूत, प्रजा वत्सल, हिंसा विरोधी, बली प्रथा को बंद करवाने वाले, करुणानिधि, सब जीवों से प्रेम रखने वाले दयालू राजा थे. 
  • महाराजा अग्रसेन की जयंती हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाई जाती है. 

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