
भोले तेरी भक्ति का अपना ही
होली की पूजा विधि
होलिका दहन को लेकर क्यों है भ्रम
कुछ स्थानों पर होली की तिथि को लेकर भ्रम है। कहीं 13 मार्च को होलिका दहन बताया जा रहा है तो कहीं 14 मार्च को। हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन और अगले दिन रंगों की होली खेली जाती है। इस वर्ष पूर्णिमा तिथि 13 मार्च को है, इसलिए होलिका दहन 13 मार्च की रात को और रंगों की होली 14 मार्च को मनाई जायेगी।
कब है रंगों का त्यौहार धुलंडी
हिंदू पंचांग के अनुसार होलिका दहन के दूसरे दिन रंगों का त्योहार धूलंडी मनाया जाता है। इस वर्ष यह 14 मार्च को मनाया जायेगा। होली का त्योहार प्रेम, उमंग और खुशियों का प्रतीक है। इस दिन लोग गिले शिकवे भूलकर एक दूसरे को रंग लगाते हैं और मिठाइयां बांटते हैं। यह बुराई पर अच्छाई की जीत का त्यौहार है। होली भारत के सबसे प्रमुख और रंगीन त्योहारों में से एक है। यह फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, जो वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक होता है। होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत और प्रेम, भाईचारे और मित्रता को बढ़ावा देने का प्रतीक है। इस दिन लोग रंगों, गुलाल और पानी से खेलते हैं, गीत गाते हैं, नाचते हैं और पारंपरिक मिठाइयाँ और व्यंजन बांटते हैं। होलिका दहन, जो होली से एक दिन पहले होता है, बुराई पर अच्छाई की विजय की कहानी को दर्शाता है और लोगों के बीच एकता, खुशी और मेलजोल का संदेश फैलाता है।
होलिका दहन की कहानी
होलिका दहन की कहानी प्राचीन भारतीय पौराणिक कथा पर आधारित है। कहानी के अनुसार, राजा हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु का कट्टर दुश्मन था और चाहता था कि सभी लोग उसकी पूजा करें। लेकिन उसका बेटा प्रह्लाद, भगवान विष्णु का भक्त था। इससे हिरण्यकश्यप नाराज हो गया और उसने प्रह्लाद को मारने के कई प्रयास किए। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के पास एक विशेष वरदान था, जिससे वह आग में नहीं जल सकती थी। हिरण्यकश्यप ने होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाए। होलिका ने ऐसा ही किया, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका स्वयं आग में जलकर भस्म हो गई। इसी घटना की याद में होलिका दहन मनाया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
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Author - Saroj Jangir
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