प्रेरणादायक कहानी आत्मज्ञानी Aatmgyani Short Hindi Story
चार साधुओं की प्रेरणादायक कथा
एक समय की बात है, चार साधु भगवान शिव के मंदिर के पास से गुजर रहे थे। वे अपनी साधना और ध्यान में इतने लीन थे कि उन्होंने भगवान शिव को प्रणाम नहीं किया। यह देखकर माता पार्वती को क्रोध आ गया। उन्होंने उन साधुओं को श्राप दे दिया, "जाओ, कोचवान बन जाओ!"
माता के श्राप के कारण चारों साधु हाथियों को चलाने वाले कोचवान बन गए। एक दिन, जब वे चारों हाथियों पर बैठे कहीं जा रहे थे, माता पार्वती ने प्रकट होकर उनसे पूछा, "बताओ, कोचवान बनकर कैसा लग रहा है?"
साधुओं ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, "हमें बहुत अच्छा लग रहा है।" यह सुनकर माता पार्वती को आश्चर्य हुआ। उन्होंने कहा, "पहले तुम साधु थे, लोग तुम्हारी पूजा करते थे। अब तुम हाथी हांक रहे हो, फिर भी कहते हो कि अच्छा लग रहा है?"
साधुओं ने उत्तर दिया, "हमारे लिए बाहरी रूप बदलने से कुछ नहीं बदलता। जैसे नाटक में कोई व्यक्ति कभी चौकीदार तो कभी राजा का किरदार निभाता है, वैसे ही यह शरीर भी केवल एक भूमिका है। असली पहचान तो आत्मा की होती है, और वह अजर-अमर है।"
माता पार्वती को उनकी बातों पर और क्रोध आया। उन्होंने दोबारा श्राप दिया, "जाओ, अब ऊंट बन जाओ।" अब वे साधु ऊंट बन गए।
कुछ समय बाद, वे चारों ऊंट के रूप में अपनी लंबी गर्दन से पेड़ों की पत्तियां खा रहे थे। तभी माता पार्वती फिर उनके सामने प्रकट हुईं और पूछा, "अब ऊंट बनकर कैसा लग रहा है?"
साधुओं ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, "अब तो और भी अच्छा लग रहा है। न हमें नहाने की चिंता है, न धोने की। बस पत्तियां खाते हैं और घूमते हैं।"
माता पार्वती को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि उनके श्राप से भी साधु परेशान नहीं हो रहे। उन्होंने भगवान शिव से जाकर कहा, "प्रभु, ये साधु किस मिट्टी के बने हैं? मैंने उन्हें कोचवान बनाया, ऊंट बनाया, लेकिन उनकी खुशी में कोई कमी नहीं आई।"
भगवान शिव ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, "पार्वती, ये साधु आत्मज्ञानी हैं। वे खुद को शरीर से नहीं, आत्मा से पहचानते हैं। उनके लिए यह शरीर केवल एक माध्यम है। चाहे वे किसी भी रूप में हों, उनकी आत्मा अजर-अमर है। यही आत्मज्ञान की शक्ति है। बाहरी बदलाव से कुछ नहीं बदलता, असली सुख आत्मा को पहचानने में है।"
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इस कहानी से शिक्षा
यह प्रेरणादायक कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा सुख आत्मा की पहचान में है। हमारे बाहरी हालात, चाहे वे कितने भी कठिन क्यों न हों, आत्मज्ञान से प्रभावित नहीं कर सकते। अगर हम अपनी आत्मा की शक्ति को पहचान लें, तो हर परिस्थिति में शांत और संतुलित रह सकते हैं।
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