यो फागण को महीनो घणो याद आवे है

यो फागण को महीनो घणो याद आवे है

यो फागण को महीनो,
घणो याद आवे है,
कांधे ऊपर पचरंगो,
फर फर फहरावे है।।

दर्जी से निशान सिलाया,
वापे जय श्रीश्याम लिखाया,
लगा घुंघरी घोटा किनारी,
सुंदर भी घणा सजाया,
या मोर पंख जो बांधी,
म्हारा श्याम ने भावे है,
कांधे ऊपर यो झंडो,
फर फर फहरावे है।।

निशान का पूजन करके,
बाबा की आरती उतारी,
परिक्रमा नगर की करके,
करी चालण की तैयारी,
श्रीश्याम नाम जयकारा,
सब भक्त लगावे है,
कांधे ऊपर यो झंडो,
फर फर फहरावे है।।

नित सांझ सवेरे भक्तो,
होती है पूजा अर्चना,
बाजे ढोलक ढपली ताली,
करा सारा मिलके कीर्तन,
जो भजन सुनाया हमने,
बाबा ने रिझावे है,
कांधे ऊपर यो झंडो,
फर फर फहरावे है।।

कर पांच दिना की सेवा,
बाबा को निशान चढ़ाया,
दरबार पहुंचकर भक्तो,
बाबा का दर्शन पाया,
‘श्रवण’ जो निशान उठाए,
वाने श्याम निभावे है,
कांधे ऊपर यो झंडो,
फर फर फहरावे है।।

यो फागण को महीनो,
घणो याद आवे है,
कांधे ऊपर पचरंगो,
फर फर फहरावे है।।


पचरंगो(सतीश श्रवण)म०गढ़।

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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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