अंतिम क्षणों की सीख हिंदी कहानी
पुराने समय की बात है, उज्जैनी राज्य का राजा विक्रम अत्यंत न्यायप्रिय था, लेकिन क्रोधी स्वभाव के कारण कभी-कभी कठोर निर्णय ले लेता था। एक दिन किसी विवाद में उसने अपने प्रिय मंत्री सोमेश्वर को मृत्युदंड देने का आदेश दे दिया।
राजा ने सैनिकों से कहा, "आज शाम तक सोमेश्वर को फांसी दे दी जाए। जाओ, उसे सूचना दे आओ।" आदेश पाते ही सैनिक मंत्री के घर पहुंचे। वहां का दृश्य देखकर वे चकित रह गए—सोमेश्वर अपने परिवार और मित्रों संग उत्सव मना रहे थे। आज उनका जन्मदिन था।
सैनिकों ने जैसे ही राजा का आदेश सुनाया, वहां मौजूद सभी लोग स्तब्ध रह गए। लेकिन सोमेश्वर शांत भाव से मुस्कुराए और बोले, "जब तक जीवन है, तब तक आनंद का अनुभव क्यों न करें?" उनकी यह बात सुनकर मित्र और परिजन भी भावुक हो गए, मगर उन्होंने मंत्री की बात मानकर पुनः उत्सव मनाना शुरू कर दिया।
जब राजा को यह समाचार मिला, तो वह हैरान रह गया। उसने तत्काल मंत्री को दरबार में बुलवाया और क्रोधित स्वर में पूछा, "तुम्हें पता है कि आज शाम तुम्हारी मृत्यु निश्चित है, फिर भी तुम उत्सव क्यों मना रहे थे?"
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सोमेश्वर ने विनम्रता से उत्तर दिया, "महाराज, आपने मुझे जीवन के अंतिम कुछ घंटे तो दिए हैं। यदि मैं इन क्षणों को निराशा में बिता दूं, तो यह समय व्यर्थ चला जाएगा। मैं चाहता था कि जब तक जीवित हूं, अपने परिवार और प्रियजनों के साथ खुशी से रहूं।"
राजा को मंत्री की यह बात भीतर तक छू गई। उसने सोचा, "जो व्यक्ति जीवन के हर क्षण को पूरी भावना से जीता है, उसे मृत्युदंड देना अनुचित होगा।"
राजा ने तुरंत सोमेश्वर की सजा माफ कर दी और कहा, "तुमने मुझे सिखाया कि जीवन का प्रत्येक क्षण अनमोल है। इसे दुख और चिंता में गँवाने के बजाय आनंद और संतोष के साथ जीना चाहिए।"
यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में हर क्षण मूल्यवान है। परिस्थितियां चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हों, हमें निराशा में डूबने के बजाय सकारात्मकता और आनंद से जीवन जीना चाहिए।