असली बुद्धिमान कौन हिंदी कहानी
एक सुंदर और समृद्ध राज्य के राजा समरप्रताप को अपने दरबार में ज्ञानी और बुद्धिमान मंत्रियों पर बहुत गर्व था। लेकिन एक दिन राजा ने दरबार में एक विचित्र इच्छा प्रकट की—"मेरे दरबार में सभी चतुर और ज्ञानी हैं, परंतु मनोरंजन के लिए एक मूर्ख भी होना चाहिए।"
राजा की इस इच्छा पर सभी दरबारी सहमत हो गए। इसके लिए पूरे राज्य में प्रतियोगिता करवाई गई और अंततः एक व्यक्ति, गोपालु, को सबसे बड़ा मूर्ख घोषित कर दरबार में नियुक्त कर लिया गया।
राजा ने उसे एक अनोखा ताज पहनाया और प्रतिदिन उससे प्रश्न पूछते। गोपालु के अटपटे और हास्यास्पद उत्तर सुनकर दरबार में ठहाके गूंजते। यह सिलसिला वर्षों तक चला, लेकिन फिर अचानक राजा गंभीर रूप से बीमार पड़ गए।
राज्य के वैद्य और दूर-दूर से आए चिकित्सक भी उनका इलाज करने में असफल रहे। जब राजा को महसूस हुआ कि उनका अंत निकट है, तो उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा बताई—"मैं जीवन का अंतिम समय हंसते हुए बिताना चाहता हूं।"
राजा ने गोपालु को बुलाया और कहा, "आज तक मैं तुझसे प्रश्न करता रहा, अब तू मुझसे पूछ।"
गोपालु ने पूछा, "राजन, मृत्यु के बाद आप कहां जाएंगे?"
राजा ने उत्तर दिया, "परमात्मा के पास।"
गोपालु ने फिर पूछा, "आप वहां कितने दिनों तक रहेंगे?"
राजा ने उत्तर दिया, "हमेशा के लिए।"
तब गोपालु ने मुस्कुराते हुए कहा, "राजन, फिर तो आपने वहां के लिए बहुत सारी तैयारियां कर ली होंगी? वहाँ आराम से रहने के लिए बढ़िया इंतजाम किए होंगे?"
राजा यह सुनकर चुप हो गए। उन्होंने कभी इस बारे में सोचा ही नहीं था।
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तब गोपालु ने अपना ताज उतारकर राजा के सिर पर रख दिया और कहा, "राजन, असली मूर्ख तो मैं नहीं, बल्कि आप हैं! यहाँ के लिए इतना वैभव, इतना ऐश्वर्य इकट्ठा किया, लेकिन जहाँ हमेशा रहना है, वहाँ के लिए कुछ भी नहीं किया!"
राजा के मुख पर गंभीरता छा गई। दरबार में सन्नाटा था। आज मूर्ख नहीं, बल्कि सबसे बड़ा ज्ञानी बोल रहा था।
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में केवल भौतिक सुख-संपत्ति ही सब कुछ नहीं है। हम उस संसार के लिए अनेकों प्रयास करते हैं, जहाँ हमें कुछ समय के लिए रहना है, लेकिन जहाँ हमें हमेशा रहना है, उसके लिए कुछ नहीं सोचते। वास्तव में बुद्धिमान वही है जो इस सच्चाई को समझकर जीता है।