सखियों देखो, बड़ा निराला, लाड़ा गौरा का। पहनता गले, सर्पों की माला, लाड़ा गौरा का।
घोड़ी भी न मिली है इसको, चढ़ के बैल पे आया है, बंदे भी न मिले बाराती, भूत-चुड़ैलें लाया है। लगता, बड़ा ही, भोला-भाला, लाड़ा गौरा का, पहनता गले, सर्पों की माला, लाड़ा गौरा का।
तन पर भस्म रमाई उसने, हाथ त्रिशूल सजाया है, न पगड़ी न सेहरा उसने, जोड़ा भी न सजाया है। आया, पहन के, मृगचर्म का शाला,
रोटी छीन-छीनकर खाते बाराती, सब्र करना भी सीखा नहीं, राशन सारा चट कर डाला, पेट फिर भी भरा नहीं। ऊपर से ही मांगता, भांग का ही प्याला, लाड़ा गौरा का, पहनता गले, सर्पों की माला, लाड़ा गौरा का।
अजब-गजब है शादी का सागर, किसने मिलाई ये राशि है, राजा की बेटी है गौरा, और वह पर्वत का वासी है। अब तो रब ही रखवाला, लाड़ा गौरा का, पहनता गले, सर्पों की माला, लाड़ा गौरा का।
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