भटक रहा है मन मेरा मन की कौन मीत
भटक रहा है मन मेरा मन की कौन मीत
मन के हारे हार है,
मन के जीते जीत,
भटक रहा है मन मेरा,
मन की कौन मीत,
सात घोड़े सूरज के दौड़ते,
मन के दौड़ते हजार,
लाचार लाचार फिरे मन,
मन का कौन दुलार।
मन कभी जंगल,
मन कभी कूआं,
मन कभी बहता पानी,
रूप बदलता हर पल,
फिर भी इसकी अधूरी कहानी।
कभी खोजना अमृत,
कभी पकड़े मृगतृष्णा की डोर,
जितना साधो उतना भागे,
ये मन बड़ा चितचोर।
मन के हारे हार है,
मन के जीते जीत,
भटक रहा है मन मेरा,
मन की कौन मीत।
राजा बना मन कभी,
कभी भिखारी बन जाए,
कभी शमशान की राख में सोए,
कभी स्वर्ग की गंध में भरमाए।
ध्यान धरे संकल्प करे,
फिर भी माया में लुट जाए,
जिस दिन ये हरि से जुड़ जाए,
उस दिन जीवन सफल हो जाए।
सात घोड़े सूरज के दौड़ते,
मन के दौड़ते हजार,
लाचार लाचार फिरे मन,
मन का कौन दुलार।
मन के घोड़े दौड़ रहे किधर,
कोई ठिकाना नहीं,
सोने का रथ समझा जिसे,
निकला वो रेत का सपना कहीं।
संतों ने कहा,
मन को प्रेम की धार में डाल,
जिसने श्याम का नाम जपा,
उसके खुल गए सब जाल।
मन के हारे हार है,
मन के जीते जीत,
भटक रहा है मन मेरा,
मन की कौन मीत,
सात घोड़े सूरज के दौड़ते,
मन के दौड़ते हजार,
लाचार लाचार फिरे मन,
मन का कौन दुलार।
मन कभी जंगल,
मन कभी कूआं,
मन कभी बहता पानी,
रूप बदलता हर पल,
फिर भी इसकी अधूरी कहानी।
मन के जीते जीत,
भटक रहा है मन मेरा,
मन की कौन मीत,
सात घोड़े सूरज के दौड़ते,
मन के दौड़ते हजार,
लाचार लाचार फिरे मन,
मन का कौन दुलार।
मन कभी जंगल,
मन कभी कूआं,
मन कभी बहता पानी,
रूप बदलता हर पल,
फिर भी इसकी अधूरी कहानी।
कभी खोजना अमृत,
कभी पकड़े मृगतृष्णा की डोर,
जितना साधो उतना भागे,
ये मन बड़ा चितचोर।
मन के हारे हार है,
मन के जीते जीत,
भटक रहा है मन मेरा,
मन की कौन मीत।
राजा बना मन कभी,
कभी भिखारी बन जाए,
कभी शमशान की राख में सोए,
कभी स्वर्ग की गंध में भरमाए।
ध्यान धरे संकल्प करे,
फिर भी माया में लुट जाए,
जिस दिन ये हरि से जुड़ जाए,
उस दिन जीवन सफल हो जाए।
सात घोड़े सूरज के दौड़ते,
मन के दौड़ते हजार,
लाचार लाचार फिरे मन,
मन का कौन दुलार।
मन के घोड़े दौड़ रहे किधर,
कोई ठिकाना नहीं,
सोने का रथ समझा जिसे,
निकला वो रेत का सपना कहीं।
संतों ने कहा,
मन को प्रेम की धार में डाल,
जिसने श्याम का नाम जपा,
उसके खुल गए सब जाल।
मन के हारे हार है,
मन के जीते जीत,
भटक रहा है मन मेरा,
मन की कौन मीत,
सात घोड़े सूरज के दौड़ते,
मन के दौड़ते हजार,
लाचार लाचार फिरे मन,
मन का कौन दुलार।
मन कभी जंगल,
मन कभी कूआं,
मन कभी बहता पानी,
रूप बदलता हर पल,
फिर भी इसकी अधूरी कहानी।
मन की स्थिति ही हार और जीत का तय करती है। यह हर समय भटकता रहता है, कभी इच्छाओं के पीछे दौड़ता है, तो कभी मोह-माया में उलझ जाता है। मन को साधना कठिन है क्योंकि यह हमेशा बदलता रहता है। मन कभी राजा बनता है, तो कभी भिखारी। जब तक यह मृगतृष्णा के पीछे भागता रहेगा, तब तक अशांत रहेगा, लेकिन जैसे ही यह ईश्वर से जुड़ जाएगा, जीवन सफल हो जाएगा। संतों ने कहा है कि मन को प्रेम और भक्ति की धारा में डालना चाहिए क्योंकि जिसने प्रभु का नाम जपा वो सारे बंधनों से मुक्त हो गया। हर हर महादेव।
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत | महादेव भजन | Shiv Bhajan | Krishna Bhajan | Bhajan Marg Songs
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Author - Saroj Jangir
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