साधुओं सा प्रेम ही नहीं मैं अघोर का बल भी रखता हूं
ॐ नमः शिवाय,
ॐ नमः शिवाय,
साधुओं सा प्रेम ही नहीं,
मैं अघोर का बल भी रखता हूं,
प्रेम सिखाता हूं प्रेमियों को,
और क्रोध में मरघट सजाता हूं।
ध्यान में डूबूं तो गंगा बहाऊं,
भृकुटि चढ़े तो त्रिलोक जलाऊं,
स्नेह में लोरी बनकर सुनाऊं,
तांडव में काली रात बुलाऊं।
मौन मेरा संजीवनी,
मेरी हुंकार संहार,
जो प्रेम में झुका सका,
उसे जीवन उपहार।
रुद्राक्ष मेरी माला में झूमें,
भस्म से जग मेरा तन को छूने,
स्नेह में जलधारा बन जाऊं,
क्रोध में अग्नि बरसा दिखलाऊं।
शरण में आ शिवत्व पा,
छोड़ दे ये छल-प्रपंच,
वरना मेरी दृष्टि भर से,
जल जाएगा ये कंच।
भक्तों का द्वार मैं सदा खुला,
वैरियों के लिए मैं काल बना,
कंठ में विष पर अमृत हृदय,
चाहे शिव कह चाहे महाकाल बना।
हर हर महादेव।
हम शिव भक्त हैं उनका नाम ही हमारा जीवन है। हमारे हृदय में उनकी भक्ति की अग्नि जलती रहती है, जो हर संकट में राह को प्रकाशमान करती है। रुद्राक्ष की माला गले की शोभा है, और भस्म अभिमान। यह शरीर नश्वर है, परंतु आत्मा अमर है। गंगा की निर्मलता विचारों में बसती है, और तांडव की ऊर्जा संकल्पों में। शिव की कृपा से हर बाधा को सहर्ष स्वीकार करते हैं और प्रेम से हर जीव का सम्मान करते हैं। शिव ही सत्य हैं, शिव ही अनंत हैं। हम उनका अंश बनकर उनकी भक्ति में लीन होना चाहते हैं। हर हर महादेव।
महाकाल भजन | साधुओं सा प्रेम ही नहीं, मैं अघोर का बल भी रखता हूँ | Om Namah Shivaya | Mahakal Bhajan
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Author - Saroj Jangir
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