उच्चे पहाड़ा वाली माँ जब तेरा बुलावा
उच्चे पहाड़ा वाली माँ जब तेरा बुलावा आए माँ
(मुखड़ा)
उच्चे पहाड़ा वाली माँ, जब तेरा बुलावा आए माँ।
दिल के तार हिलावे, मैने बड़ा चंगा लगता, मैने बड़ा चंगा लगता।
(अंतरा)
चंगा लगता मेरी माँ के, सानु बड़ा चंगा लगता।
चंगा लगता मेरी माँ के, सानु बड़ा चंगा लगता।।
उच्चे पहाड़ा वाली माँ, जब बच्चे चढ़न चढ़ाइयाँ माँ।
करते नेक कमाइयाँ, मैने बड़ा चंगा लगता, मैने बड़ा चंगा लगता।।
चंगा लगता मेरी माँ के, सानु बड़ा चंगा लगता।
चंगा लगता मेरी माँ के, सानु बड़ा चंगा लगता।।
उच्चे पहाड़ा वाली माँ, जब ठंडी चलें हवाएँ माँ।
काली छाँव घटाएँ, मैने बड़ा चंगा लगता, मैने बड़ा चंगा लगता।।
उच्चे पहाड़ा वाली माँ, जब भेटें गाएँ दुलारे।
अम्मिये बोलें तेरे जयकारे, मैने बड़ा चंगा लगता, मैने बड़ा चंगा लगता।।
उच्चे पहाड़ा वाली माँ।
तेरे दर पे लगते मेले माँ, तेरे दर पे लगते मेले।
कंजक बन के तू खेले, मैने बड़ा चंगा लगता।।
उच्चे पहाड़ा वाली माँ।
तेरे दर पे बजते नगाड़े, अम्मिये दर पे बजते नगाड़े।
नाचते चढ़ते सारे, कि मैने बड़ा चंगा लगता।।
(पुनरावृति)
चंगा लगता मेरी माँ के, मैने बड़ा चंगा लगता।।
उच्चे पहाड़ा वाली माँ, जब तेरा बुलावा आए माँ।
दिल के तार हिलावे, मैने बड़ा चंगा लगता, मैने बड़ा चंगा लगता।
(अंतरा)
चंगा लगता मेरी माँ के, सानु बड़ा चंगा लगता।
चंगा लगता मेरी माँ के, सानु बड़ा चंगा लगता।।
उच्चे पहाड़ा वाली माँ, जब बच्चे चढ़न चढ़ाइयाँ माँ।
करते नेक कमाइयाँ, मैने बड़ा चंगा लगता, मैने बड़ा चंगा लगता।।
चंगा लगता मेरी माँ के, सानु बड़ा चंगा लगता।
चंगा लगता मेरी माँ के, सानु बड़ा चंगा लगता।।
उच्चे पहाड़ा वाली माँ, जब ठंडी चलें हवाएँ माँ।
काली छाँव घटाएँ, मैने बड़ा चंगा लगता, मैने बड़ा चंगा लगता।।
उच्चे पहाड़ा वाली माँ, जब भेटें गाएँ दुलारे।
अम्मिये बोलें तेरे जयकारे, मैने बड़ा चंगा लगता, मैने बड़ा चंगा लगता।।
उच्चे पहाड़ा वाली माँ।
तेरे दर पे लगते मेले माँ, तेरे दर पे लगते मेले।
कंजक बन के तू खेले, मैने बड़ा चंगा लगता।।
उच्चे पहाड़ा वाली माँ।
तेरे दर पे बजते नगाड़े, अम्मिये दर पे बजते नगाड़े।
नाचते चढ़ते सारे, कि मैने बड़ा चंगा लगता।।
(पुनरावृति)
चंगा लगता मेरी माँ के, मैने बड़ा चंगा लगता।।
उचेया पहाड़ा वाली मां जय मां नैना देवी जी
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ऊँचे पहाड़ों वाली माँ का बुलावा ऐसा है, जो मन के तारों को झंकृत कर देता है। उनका दर वह पवित्र स्थान है, जहाँ हर कदम पर सुख और शांति मिलती है। जैसे ठंडी हवा चेहरे को सहलाती है, वैसे ही माँ की कृपा मन को सुकून देती है।
जब भक्त माँ के दर पर चढ़ाई चढ़ते हैं, तो उनके नेक कर्मों की सुगंध चारों ओर फैलती है। यह यात्रा केवल शरीर की नहीं, आत्मा की उन्नति है। माँ के जयकारों में, भेंटों की मधुर धुन में, और नगाड़ों की गूंज में मन आनंद से झूम उठता है।
माँ का दर मेला है, जहाँ हर भक्त कंजक बनकर उनकी ममता में रम जाता है। जैसे बच्चे माँ के साथ खेल में खो जाते हैं, वैसे ही भक्त माँ के प्रेम में डूबकर सारी चिंताएँ भूल जाते हैं। यह माँ का वह आलम है, जो हर पल को उत्सव बना देता है, और मन को कहने को मजबूर करता है—माँ के साथ सब कुछ चंगा है।
जब भक्त माँ के दर पर चढ़ाई चढ़ते हैं, तो उनके नेक कर्मों की सुगंध चारों ओर फैलती है। यह यात्रा केवल शरीर की नहीं, आत्मा की उन्नति है। माँ के जयकारों में, भेंटों की मधुर धुन में, और नगाड़ों की गूंज में मन आनंद से झूम उठता है।
माँ का दर मेला है, जहाँ हर भक्त कंजक बनकर उनकी ममता में रम जाता है। जैसे बच्चे माँ के साथ खेल में खो जाते हैं, वैसे ही भक्त माँ के प्रेम में डूबकर सारी चिंताएँ भूल जाते हैं। यह माँ का वह आलम है, जो हर पल को उत्सव बना देता है, और मन को कहने को मजबूर करता है—माँ के साथ सब कुछ चंगा है।
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Author - Saroj Jangir
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