गुरुदेव हे हमारे विपदा मेरी मिटा जा

गुरुदेव हे हमारे विपदा मेरी मिटा जा

सुनो दुःख हमारी,
गुरु दीनवत्सल,
भटकाता फिराता,
मेरा मन ये चंचल।
षट् बैरी पीछे,
पड़े मेरे गुरुवर,
मिटा दो व्यथा को,
मचाया जो हलचल।।

गुरुदेव हे हमारे,
विपदा मेरी मिटा जा।
बनके तमारी आजा,
तम अंध को मिटा जा।
मझधार में है नैया,
तुम पार भव करा जा।।
गुरुदेव...

विषयों ने जब सताया,
माया ने भी नचाया।
तब पद कमल में आया,
अपना मुझे बनाजा।।
गुरुदेव...

दुनिया को मैंने देखा,
पाया है सिर्फ धोखा।
खुले ज्ञान का झरोखा,
ऐसा दिया जलाजा।।
गुरुदेव...

कर दो कृपा तनिक ही,
बनूँ भक्ति का रसिक ही।
सत्मार्ग का पथिक ही,
हरि से लगन लगाजा।।
गुरुदेव...

छाया हो कर कमल की,
मन-बुद्धि हो अमल की।
सोचे न कान्त छल की,
फिर श्याम से मिलाजा।।
गुरुदेव...



Gurudev He Hamare Vipada Mita Ja Bhajan गुरु भजन : गुरुदेव हे हमारे//रचना : दासानुदास श्रीकान्त दास जी महाराज/स्वर : विप्र अमित सारस्वत जी ।

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मन की चंचलता और दुखों का बोझ जब हृदय को भटकाने लगता है, तब एकमात्र सहारा वह शक्ति है, जो करुणा से भरी है। यह शक्ति मन को शांत कर, उसे सही मार्ग दिखाती है। जैसे तूफान में डूबती नाव को किनारा मिलता है, वैसे ही यह करुणा जीवन की मझधार से पार उतारती है। 
 
गुरु भजन : गुरुदेव हे हमारे
रचना : दासानुदास श्रीकान्त दास जी महाराज
स्वर : विप्र अमित सारस्वत जी ।
 
षट् वैरियों—काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, और मत्सर—के पीछे पड़ा मन जब थक जाता है, तब वह इस शक्ति के चरणों में शरण पाता है। यह शरणागति ही दुखों की हलचल को मिटाती है। जैसे अंधेरे में दीया जलने से तम छट जाता है, वैसे ही यह शक्ति अज्ञान के अंधकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश फैलाती है। 

Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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