जिसके दिल को प्रभु प्रेम भाता नहीं
जिसके दिल को प्रभु प्रेम भाता नहीं
जिसके दिल को प्रभु प्रेम भाता नहीं,
ऐसे लोगों से मुझको तो मिलना नहीं।
जिस जगह ईश का ध्यान होता नहीं,
उस जगह में हमें तो ठहरना नहीं।।
हर कली, हर घड़ी में बसे ईश हैं,
प्यारे, दिल में सभी के वही ईश हैं।
जिसने माना, जहाँ प्रभु वहीं बस गये,
ऐसे भक्तों से हमको मुकरना नहीं।।
प्रेम करते सभी हैं सभी से मगर,
ईश से प्रेम करने से जाते मुकर।
जिसके मन में कभी प्रेम आता नहीं,
ऐसे जन के मुझे पास रहना नहीं।।
कामनाओं में जो भी फँसे लोग हैं,
याद कर लो, उन्हें सारे ही रोग हैं।
जिसके मन से कभी काम जाता नहीं,
ऐसे लोगों में तू कान्त रहना नहीं।।
जिसके दिल को प्रभु प्रेम भाता नहीं,
ऐसे लोगों से मुझको तो मिलना नहीं।।
ऐसे लोगों से मुझको तो मिलना नहीं।
जिस जगह ईश का ध्यान होता नहीं,
उस जगह में हमें तो ठहरना नहीं।।
हर कली, हर घड़ी में बसे ईश हैं,
प्यारे, दिल में सभी के वही ईश हैं।
जिसने माना, जहाँ प्रभु वहीं बस गये,
ऐसे भक्तों से हमको मुकरना नहीं।।
प्रेम करते सभी हैं सभी से मगर,
ईश से प्रेम करने से जाते मुकर।
जिसके मन में कभी प्रेम आता नहीं,
ऐसे जन के मुझे पास रहना नहीं।।
कामनाओं में जो भी फँसे लोग हैं,
याद कर लो, उन्हें सारे ही रोग हैं।
जिसके मन से कभी काम जाता नहीं,
ऐसे लोगों में तू कान्त रहना नहीं।।
जिसके दिल को प्रभु प्रेम भाता नहीं,
ऐसे लोगों से मुझको तो मिलना नहीं।।
भजन : जिसके दिल को प्रभु प्रेम भाता नहीं//रचना : दासानुदास श्रीकान्त दास जी महाराज//स्वर : आलोक जी ।
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प्रभु का प्रेम ही जीवन का सच्चा रस है। जिस मन में यह प्रेम नहीं, वह सूना मरुस्थल सा है, और ऐसे मन वालों से दूरी ही भली। जहाँ प्रभु का स्मरण न हो, वह स्थान खालीपन से भरा है; वहाँ मन को ठहरने की कोई वजह नहीं।
ईश्वर हर पल, हर जगह बस्ता है—हर फूल में, हर साँस में। जो मन उसे अपने हृदय में बसाए, वह स्वयं प्रभु का मंदिर बन जाता है। ऐसे भक्तों का साथ अनमोल है, क्योंकि वे प्रभु की सजीव मूर्ति हैं। उनके संग से कभी मुँह नहीं मोड़ना चाहिए।
संसार में प्रेम तो सभी करते हैं, पर प्रभु से प्रेम करने में पीछे हट जाते हैं। जिसके मन में यह प्रेम नहीं जागता, उसका साथ जीवन को बोझिल करता है। जैसे प्यासा जल के बिना तड़पता है, वैसे ही मन प्रभु के प्रेम बिना अधूरा रहता है।
कामनाओं का जाल मन को उलझाता है, जैसे रोग शरीर को कमजोर करते हैं। जो इस जाल में फँसा, वह प्रभु से दूर हो जाता है। ऐसे लोगों के बीच रहना मन को अशांत करता है। इसलिए मन को प्रभु के चरणों में बाँधो, ताकि हर पल उनके प्रेम में डूबा रहे।
ईश्वर हर पल, हर जगह बस्ता है—हर फूल में, हर साँस में। जो मन उसे अपने हृदय में बसाए, वह स्वयं प्रभु का मंदिर बन जाता है। ऐसे भक्तों का साथ अनमोल है, क्योंकि वे प्रभु की सजीव मूर्ति हैं। उनके संग से कभी मुँह नहीं मोड़ना चाहिए।
संसार में प्रेम तो सभी करते हैं, पर प्रभु से प्रेम करने में पीछे हट जाते हैं। जिसके मन में यह प्रेम नहीं जागता, उसका साथ जीवन को बोझिल करता है। जैसे प्यासा जल के बिना तड़पता है, वैसे ही मन प्रभु के प्रेम बिना अधूरा रहता है।
कामनाओं का जाल मन को उलझाता है, जैसे रोग शरीर को कमजोर करते हैं। जो इस जाल में फँसा, वह प्रभु से दूर हो जाता है। ऐसे लोगों के बीच रहना मन को अशांत करता है। इसलिए मन को प्रभु के चरणों में बाँधो, ताकि हर पल उनके प्रेम में डूबा रहे।
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Author - Saroj Jangir
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