(मुखड़ा) मासूम बनता है, बड़ा सीधा लगता है। चुपके से आकर के, चोरी करता है, चोरी करके फिर हमसे वरजोरी करता है।।
(अंतरा) आखिर ये चोरी कब तक, यशोदा माँ को पता नहीं है जब तक। अब होगी शिकायत घर में, मैया लेगी खबर तेरी पल भर में।। पकड़ रहो, जकड़े रहो, चोरी करता है, चोरी करके फिर हमसे वरजोरी करता है।।
(अंतरा) निज बाल सखा संग आता, मेरी मटकी के सब माखन खा जाता। दधि-दूध की मटकी तोड़े, पनघट पे मुझको बहुत सखियाँ ये छेड़े।। बाँधे रहो, माँ से कहो, चोरी करता है, चोरी करके फिर हमसे वरजोरी करता है।।
(अंतरा) क्या ढोंग रचता है, बड़ा नाटक करता है। चुपके से आकर के, चोरी करता है, चोरी करके फिर हमसे वरजोरी करता है।।
(अंतरा) अब हाथ दुख रहा है रे, ले पकड़ ले गोपी हाथ दूसरे मेरे। एक ग्वाल सखा को बुलाए, श्रीकांत सखा के हाथ कृष्ण पकड़ाए।। फटकार रही, डाँट रही, चोरी करता है, चोरी करके फिर हमसे वरजोरी करता है।।
(पुनरावृति) वह खूब हँसता है, बड़ा भोला बनता है। चुपके से आकर के, चोरी करता है, चोरी करके फिर हमसे वरजोरी करता है।।
Masum Banata Hai Bada Seedha Lagata Hai Bhajan-मासूम बनता है बड़ा सीधा लगता है | स्वर : सियारामजी |
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श्री कृष्णा जी की मन को मोह लेने वाली एक ऐसी शरारत है, जो मासूमियत के रंग में रंगी है। यह शरारत चुपके से हृदय में प्रवेश करती है, और प्रेम के माखन को चुरा लेती है। इसकी चंचलता में एक अनोखा आकर्षण है, जो भोलेपन की आड़ में सबको अपने वश में कर लेता है। यह नन्हा सा खेल नहीं, बल्कि आत्मा को बांधने का एक प्यारा बंधन है।
दासानुदास श्रीकान्त दास जी महाराज स्वर : सियाराम जी, अनन्या और गायत्री
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