मैनु दर ते सद लै दातिया भजन

मैनु दर ते सद लै दातिया भजन

मैनु दर ते सद लै दातिया, मैं दर्शन सोणा पाना है।
रज्ज दर्शन तेरा पाना है, तेरे चरणी शीश झुकना है।।

(अंतरा 1)
जय सतगुरु जी सारे करदे,
खाली झोलियाँ अपनी भरदे।
अज मैं वी झोली भर जाना है,
रज्ज दर्शन तेरा पाना है।।

(मुखड़ा पुनरावृत्ति)
मैनु दर ते सद लै दातिया, मैं दर्शन सोणा पाना है।
रज्ज दर्शन तेरा पाना है, तेरे चरणी शीश झुकना है।।

(अंतरा 2)
गया ना कोई है ऐथों खाली जी,
जो भी आया दर ते तेरे सवाली जी।
आज मैं वी सवाल इक तेरा पाना है,
तैनू दिल दा हाल सुनाना है।
तेरा रज्ज दर्शन पाना है।।

(पुनरावृत्ति)
मैनु दर ते सद लै दातिया, मैं दर्शन सोणा पाना है।
रज्ज दर्शन तेरा पाना है, तेरे चरणी शीश झुकना है।।


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सतगुरु के दर पर पुकार ऐसी है, जैसे सूरज की किरणें अंधेरे को चीरती हैं। उनके दर्शन की चाह मन को सोने-सी चमक देती है, और चरणों में शीश झुकाने से सारी बेचैनी मिट जाती है। उनकी कृपा से कोई खाली नहीं लौटता; हर झोली प्रेम और आशीष से भर जाती है।

सवाली बनकर जो उनके दर पर आता है, उसे दिल का हाल सुनाने का सुख मिलता है। जैसे प्यासा जल पाकर तृप्त होता है, वैसे ही सतगुरु का दर्शन मन को शांति देता है। संत कहते हैं, गुरु की शरण में जाओ, वहाँ हर सवाल का जवाब है। चिंतक देखता है, उनकी कृपा जीवन को अर्थ और दिशा देती है। धर्मगुरु सिखाते हैं, सतगुरु के चरणों में लीन हो, क्योंकि उनका दर्शन ही सच्चा धन है। दातिया, मुझे अपने दर पर बुला लो, एक बार दर्शन दे दो, ताकि यह मन तेरे चरणों में रम जाए।
 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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