(अंतरा 1) सोना-चांदी, हीरा-मोती, मैया, मैं नईं पावं।
श्रद्धा-सुमन ले के, दाई द्वारी म तोरे आवं। अर्जी सुन ले महामाया, महामाया, शेरावाली ज्योतवाली मां।।
(अंतरा 2) मैं तोर बेटा पप्पू साहू, तैं तो जग के माता। तोर शिवा मोर कोनो नइ हे, तोर ले हावय नाता। दर्शन दे दे महामाया, महामाया, शेरावाली ज्योतवाली मां।।
मैया महामाया, शेरावाली, ज्योतवाली माँ का रूप ऐसा है, मानो साक्षात् प्रकाश हृदय में उतर आए। उनकी बिंदिया चमकती है, पैजनियाँ छमकती हैं, और हर ध्वनि भक्त के मन को मोह लेती है। जैसे तारे रात को सजाते हैं, वैसे ही माँ की उपस्थिति जीवन को आलोकित करती है।
पप्पू साहू की तरह हर भक्त उनके द्वार पर श्रद्धा के फूल लिए खड़ा है। सोना-चाँदी, हीरा-मोती की उसे जरूरत नहीं, बस माँ की कृपा चाहिए। वह माँ को जग की माता कहता है, क्योंकि उसके लिए माँ ही सब कुछ है—नाता, विश्वास, और शरण। जैसे बच्चा माँ की गोद में सारा दुख भूल जाता है, वैसे ही माँ का दर्शन हर पीड़ा हर लेता है।
मैया की अर्जी सुनने की शक्ति अनंत है। वह हर पुकार को सुनती है, हर भक्त को अपनाती है। बस, सच्चे मन से पुकारो—हे महामाया, आ जा। उनकी ज्योत से मन का अंधेरा छँट जाता है, और जीवन प्रेम और भक्ति से भर उठता है।
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