आजा कबसे पुकारूँ तेरा नाम रे

आजा कबसे पुकारूँ तेरा नाम रे

 
आजा कबसे पुकारूँ तेरा नाम रे

मेरे कृष्णा मेरे श्याम रे,
आजा कब से पुकारूँ तेरा नाम रे,
तेरा नाम रे,
ओ मेरे कृष्णा,
मेरे श्याम रे।।

मथुरा में ढूँढा तुझको,
गोकुल में ढूँढा,
उज्जैन जाकर तेरे,
गुरुकुल में ढूँढा।
खोजत तुझको वर्षों गुज़र गए,
फिर भी रहा नाकाम रे,
आजा कब से पुकारूँ तेरा नाम रे,
तेरा नाम रे,
ओ मेरे कृष्णा,
मेरे श्याम रे।।

सांवली सूरत को,
तरसे हैं अँखियाँ,
काटे कटे ना मेरी,
बैरी ये रतियाँ।
कोई जाए तो तुझको सुनाए,
मेरा ये पैग़ाम रे,
आजा कब से पुकारूँ तेरा नाम रे,
तेरा नाम रे,
ओ मेरे कृष्णा,
मेरे श्याम रे।।

सुना है आँगन है,
सूना ज़माना,
दर-दर फिरे है तेरा,
पागल दीवाना।
टूट गया हूँ, हार गया हूँ,
कोशिश करके तमाम रे,
आजा कब से पुकारूँ तेरा नाम रे,
तेरा नाम रे,
ओ मेरे कृष्णा,
मेरे श्याम रे।।

ग़मगीन आलम है,
उजड़े चमन में,
दर्शन की चाहत,
लगी मेरे मन में।
छाई उदासी ‘रूपगिरी’ के,
दिल में आठों याम रे,
आजा कब से पुकारूँ तेरा नाम रे,
तेरा नाम रे,
ओ मेरे कृष्णा,
मेरे श्याम रे।।

मेरे कृष्णा मेरे श्याम रे,
आजा कब से पुकारूँ तेरा नाम रे,
तेरा नाम रे,
ओ मेरे कृष्णा,
मेरे श्याम रे।।



मेरे कृष्णा मेरे शयाम रे आजा कब से पुकारू तेरा नाम रे वेदाचार्य रूपगिरी जी महाराज भरतपुर

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Saroj Jangir Author Admin - Saroj Jangir

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