पूर्णचंद्रमुखं नीलिंदु रूपम्, उद्भासितं देवं दिव्यं स्वरूपम्, पूर्णं त्वं स्वर्णं त्वं वर्णं त्वं देवम्, पिता माता बंधुत्वमेव सर्वम्। जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्। जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्।
कुंचित केशं च संचित वेशम्, वर्तुल स्थूल नयनं ममेशम्, पीन कनिनिका नयनकोशम्, आकृष्ट ओष्ठं च उत्कृष्ट श्वासम्। जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्। जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्।
नीलाचलें चंचलया सहितम्, आदि देव निश्चल आनंदे स्थितम्, आनंदकंदं विश्वविंदुचंद्रम्,
नंदनंदनं त्वं इन्द्रस्य इन्द्रम्। जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्। जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्।
सृष्टि स्थिति प्रलय सर्व मूलं, सूक्ष्माति सूक्ष्मं त्वं स्थूलाति स्थूलम्, कांति मयानंतं अंतिम प्रांतं, प्रशांत कुंतलं ते मूर्तिमंतम्। जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्। जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्।
यज्ञ तप वेद ज्ञानात् अतीतं, भाव प्रेम छंदे सदा वशित्वम्, शुद्धात् शुद्धं त्वं च पूर्णात् पूर्णं, कृष्ण मेघ तुल्यं अमूल्य वर्णं। जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्। जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्।
devotional Bhajan Lyrics in Hindi
विश्व प्रकाशं सर्व क्लेश नाशम्, मन, बुद्धि, प्राण, श्वास, प्रश्वासम्, मत्स्य, कूर्म, नृसिंह, वामनः त्वम्, वराह, राम, अनंता अस्तित्वम्। जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्। जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्।
ध्रुवस्य विष्णुत्वं भक्तस्य प्राणम्, राधापति देव हे आर्त त्राणम्, सर्वज्ञान सारं लोक आधारम्, भाव संचारं अभाव संहारम्। जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्। जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्।
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्। जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्।
कृष्णदास हृदि भाव संचारम्, सदा कुरु स्वामी तव किंकरम्, तव कृपा बिंदु हि एक सारम्, अन्यथा हे नाथ सर्व असारम्। जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्। जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्।
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्। जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्।
दिव्यता का साकार रूप, जहाँ पूर्णता स्वर्ण-सी चमकती है, वही जगन्नाथ हैं। वे माता, पिता, बंधु—सब कुछ हैं। जैसे सूरज बिना भेदभाव सारी सृष्टि को रोशनी देता है, वैसे ही उनका प्रेम हर हृदय को आलोकित करता है। उनकी आँखों में करुणा का सागर ठहरा है, और साँसों में जीवन की लय बस्ती है।
नीलाचल की पावन धरती पर वे आनंद के स्रोत बनकर विराजते हैं। सृष्टि का मूल, सूक्ष्म से सूक्ष्म और स्थूल से स्थूल, वे अनंत कांति में समाए हैं। यज्ञ, तप, वेद का ज्ञान भी उनके प्रेम के सामने छोटा पड़ता है। शुद्धता और पूर्णता का वह मेघ, जो हर क्लेश को हर लेता है।
उनका स्वरूप मत्स्य, कूर्म, राम, कृष्ण बनकर सृष्टि को तारता है। वे ध्रुव का विश्वास, राधा का प्रेम, और हर जीव के प्राण हैं। जैसे नदी किनारे को सहारा देती है, वैसे ही वे लोक के आधार हैं। बलदेव और सुभद्रा के संग, सुदर्शन की शोभा लिए, वे पूर्ण ब्रह्म हैं।
हृदय में उनकी कृपा का एक बिंदु ही जीवन को सार्थक बनाता है। बिना इसके सब कुछ असार है। सच्चा भक्त वही, जो उनके प्रेम में डूबकर संसार को देखता है। मन, बुद्धि, प्राण—सब कुछ उसी की शरण में समर्पित कर दो, क्योंकि वही सर्वस्व है।
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