मैं घर नारायण ले आया भजन
मैं घर नारायण ले आया सोंग
यत फलम नास्ति तपसा न योगेन समाधिना,
तत फलम लभते सम्यक कलौ केशव कीर्तनात।
मैं घर नारायण ले आया,
मैं घर नारायण ले आया,
अब घर की कोई फ़िक्र नहीं है,
घर नारायण ले आया,
मैं घर नारायण ले आया,
अब घर की कोई फ़िक्र नहीं है,
मैं घर नारायण ले आया।
रिश्तों पे न ध्यान किसी का आंखें देखें गहनों को,
भीड़ तभी तो आएगी मलिन चीर यदि पहनो तो,
संगीत जुड़ा मां सरस्वती से आज क्या देखो दशा हुई,
गानों में ये दे रहे हैं गाली मां और बहनों को।
कलिकाल है सखा मेरे जहां पाप बने उदाहरण हैं,
काम वासना में उलझे न कहीं हरि उच्चारण है,
हैरान नहीं हूं नारायण मैं अवगत हूं इन लोगों से,
कलिकाल में ये सब होना बात बड़ी साधारण है।
तिलक लगाना माथे पे अब जाने क्यों इन्हें शर्म लगे,
गीता पे न गौर किया है तभी तो अच्छे कर्म दबे,
जो भूल चुके परिभाषा ही सनातन की तो ज़ाहिर है,
वो क्यों न छोड़ हरि को फिर कली असुर को परम कहे।
शिक्षा लेकर भी बच्चों का सही बचा न लहज़ा है,
ना रामायण का ज्ञान जिसे वो भक्त राम का कैसा है,
महाकुंभ का पता नहीं पर कोल्डप्ले पे अटके ये,
बच्चों को हम क्या कहें यहां युवाकाल भी ऐसा है।
माता-पिता के निजी क्षणों को बेच रहे कॉन्टेंट बना,
सिवा बाज़ारू बातों के है, बता ज़रा कॉन्टेंट कहां,
जो इन्फ्लुएंसर कहते इनको ना उनका खुद का स्वाभिमान,
वरना गाली सुनने को क्यों होते सब प्रेजेंट वहां।
ना कद्र कभी भी समझेगी भीड़ मेरी इन बातों की,
परे भीड़ से चलता हूं और राम रौशनी आंखों की,
मैं क्यों ही मानूं बुरा भला जब कलिकाल से अवगत हूं,
ऐसे लोगों के लिए ही भीड़ लगेगी लाखों की।
आयु दस के बच्चे भी अब धर्मगुरु बन बैठे हैं,
नशे में रहने वालों को यहां लोग ईश्वर कहते हैं,
पाखंड करे जो लोग यहां पे उनको बोलूं क्या कहूं,
सच्चे प्राणी क्यों और कैसे उन सारे को सहते हैं।
हरि भजन में चैन मिले है वरना दुनिया कष्टों जैसी,
हरि सदा ही कृपा करे आशा मेरी रास्तों बैठी,
शुक्र मनाता हूं कि मैं तो नारायण में लीन रहूं,
वरना मेरी सोच भी होती शायद मैली दुष्टों जैसी।
सूरज को मना के लाया हूं,
सूरज को मना के लाया हूं,
अंधियारे की अब कोई नहीं है,
घर नारायण ले आया,
मैं घर नारायण ले आया,
अब घर की कोई फ़िक्र नहीं,
मैं घर नारायण ले आया।
जो नारायण को जान चुके वो बात स्वयं ही कहते हैं,
हम काले युग में बस के भी बैकुण्ठधाम में रहते हैं,
काट रहे हैं दिन यहां न काले युग से मतलब है,
कल्कि दर्शन हेतु ही तो इंतज़ार में बैठे हैं।
मैं जाऊं या न जाऊं पर ये कलम तो भाव के पार चली,
दिल को चैन मिले गीतों में प्रभु तुम्हें उतार के ही,
माना लाखों पाप किए पर जब मुझको एहसास हुआ,
हरि शरण में आके मैंने माफ़ी की गुहार करी।
कन्या का सत्कार न तेरी नज़रों में आ पायेगा,
नारी को जो आंखों में तू वस्तु जैसा पायेगा,
कल यदि जो बेटी जन्मी याद ये रखना बात मेरी,
जो कर्म किए जवानी में वो उन सारे पे पछतायेगा।
पाप छुपा ले जितने भी पर ठाकुर को दिख जाते हैं,
कर्मों के ये छंद बड़े हम यूं ही न लिख पाते हैं,
अब भी करने हैं तो कर ले कर्म बुरे तू लाखों पर,
याद ये रखना बात सदा की कर्म लौट के आते हैं।
मैं नारायण की सेवा में हूं चौबीस घंटे झुका हुआ,
पास प्रभु ले आया हूं हृदय मेरा ये दुखा हुआ,
मर तो जाता कब मैं न काले युग में हृदय लगे,
ये मर्ज़ी मेरे हरि की है जो अब भी हूं मैं रुका हुआ।
खोने का क्या भय करूं आप हो मेरे साथ खड़े,
वीरानी सी घड़ियों में थे समझे तुम एहसास मेरे,
ले लो चाहे सारा कुछ पर करने को हां स्तुति तेरी,
कलम किताबें और संगीत रहने देना पास मेरे।
घर नारायण ले आया,
मैं घर नारायण ले आया,
अब घर की कोई फ़िक्र नहीं है,
घर नारायण ले आया,
मैं घर नारायण ले आया,
अब घर की कोई फ़िक्र नहीं है,
मैं घर नारायण ले आया।
तत फलम लभते सम्यक कलौ केशव कीर्तनात।
मैं घर नारायण ले आया,
मैं घर नारायण ले आया,
अब घर की कोई फ़िक्र नहीं है,
घर नारायण ले आया,
मैं घर नारायण ले आया,
अब घर की कोई फ़िक्र नहीं है,
मैं घर नारायण ले आया।
रिश्तों पे न ध्यान किसी का आंखें देखें गहनों को,
भीड़ तभी तो आएगी मलिन चीर यदि पहनो तो,
संगीत जुड़ा मां सरस्वती से आज क्या देखो दशा हुई,
गानों में ये दे रहे हैं गाली मां और बहनों को।
कलिकाल है सखा मेरे जहां पाप बने उदाहरण हैं,
काम वासना में उलझे न कहीं हरि उच्चारण है,
हैरान नहीं हूं नारायण मैं अवगत हूं इन लोगों से,
कलिकाल में ये सब होना बात बड़ी साधारण है।
तिलक लगाना माथे पे अब जाने क्यों इन्हें शर्म लगे,
गीता पे न गौर किया है तभी तो अच्छे कर्म दबे,
जो भूल चुके परिभाषा ही सनातन की तो ज़ाहिर है,
वो क्यों न छोड़ हरि को फिर कली असुर को परम कहे।
शिक्षा लेकर भी बच्चों का सही बचा न लहज़ा है,
ना रामायण का ज्ञान जिसे वो भक्त राम का कैसा है,
महाकुंभ का पता नहीं पर कोल्डप्ले पे अटके ये,
बच्चों को हम क्या कहें यहां युवाकाल भी ऐसा है।
माता-पिता के निजी क्षणों को बेच रहे कॉन्टेंट बना,
सिवा बाज़ारू बातों के है, बता ज़रा कॉन्टेंट कहां,
जो इन्फ्लुएंसर कहते इनको ना उनका खुद का स्वाभिमान,
वरना गाली सुनने को क्यों होते सब प्रेजेंट वहां।
ना कद्र कभी भी समझेगी भीड़ मेरी इन बातों की,
परे भीड़ से चलता हूं और राम रौशनी आंखों की,
मैं क्यों ही मानूं बुरा भला जब कलिकाल से अवगत हूं,
ऐसे लोगों के लिए ही भीड़ लगेगी लाखों की।
आयु दस के बच्चे भी अब धर्मगुरु बन बैठे हैं,
नशे में रहने वालों को यहां लोग ईश्वर कहते हैं,
पाखंड करे जो लोग यहां पे उनको बोलूं क्या कहूं,
सच्चे प्राणी क्यों और कैसे उन सारे को सहते हैं।
हरि भजन में चैन मिले है वरना दुनिया कष्टों जैसी,
हरि सदा ही कृपा करे आशा मेरी रास्तों बैठी,
शुक्र मनाता हूं कि मैं तो नारायण में लीन रहूं,
वरना मेरी सोच भी होती शायद मैली दुष्टों जैसी।
सूरज को मना के लाया हूं,
सूरज को मना के लाया हूं,
अंधियारे की अब कोई नहीं है,
घर नारायण ले आया,
मैं घर नारायण ले आया,
अब घर की कोई फ़िक्र नहीं,
मैं घर नारायण ले आया।
जो नारायण को जान चुके वो बात स्वयं ही कहते हैं,
हम काले युग में बस के भी बैकुण्ठधाम में रहते हैं,
काट रहे हैं दिन यहां न काले युग से मतलब है,
कल्कि दर्शन हेतु ही तो इंतज़ार में बैठे हैं।
मैं जाऊं या न जाऊं पर ये कलम तो भाव के पार चली,
दिल को चैन मिले गीतों में प्रभु तुम्हें उतार के ही,
माना लाखों पाप किए पर जब मुझको एहसास हुआ,
हरि शरण में आके मैंने माफ़ी की गुहार करी।
कन्या का सत्कार न तेरी नज़रों में आ पायेगा,
नारी को जो आंखों में तू वस्तु जैसा पायेगा,
कल यदि जो बेटी जन्मी याद ये रखना बात मेरी,
जो कर्म किए जवानी में वो उन सारे पे पछतायेगा।
पाप छुपा ले जितने भी पर ठाकुर को दिख जाते हैं,
कर्मों के ये छंद बड़े हम यूं ही न लिख पाते हैं,
अब भी करने हैं तो कर ले कर्म बुरे तू लाखों पर,
याद ये रखना बात सदा की कर्म लौट के आते हैं।
मैं नारायण की सेवा में हूं चौबीस घंटे झुका हुआ,
पास प्रभु ले आया हूं हृदय मेरा ये दुखा हुआ,
मर तो जाता कब मैं न काले युग में हृदय लगे,
ये मर्ज़ी मेरे हरि की है जो अब भी हूं मैं रुका हुआ।
खोने का क्या भय करूं आप हो मेरे साथ खड़े,
वीरानी सी घड़ियों में थे समझे तुम एहसास मेरे,
ले लो चाहे सारा कुछ पर करने को हां स्तुति तेरी,
कलम किताबें और संगीत रहने देना पास मेरे।
घर नारायण ले आया,
मैं घर नारायण ले आया,
अब घर की कोई फ़िक्र नहीं है,
घर नारायण ले आया,
मैं घर नारायण ले आया,
अब घर की कोई फ़िक्र नहीं है,
मैं घर नारायण ले आया।
कलियुग में लोग धर्म और संस्कार भूलकर भौतिकता और दिखावे में उलझ गए हैं। नारायण का नाम ही एकमात्र सहारा है जो जीवन को शांति और सही दिशा देता है। आज के समाज में पाखंड, अशिष्टता और धर्म से दूर होता युवा वर्ग चिंता का विषय है। जो भी सच्चे मन से भगवान को याद करता है, वही असली सुख और शांति पाता है। नारायण की महिमा का गुणगान करते हुए हमें आत्मचिंतन करना चाहिए। जय श्रीमन नारायण।
Mai Ghar Narayan Le Aaya-Kali Paksh Ya Hari Paksh? (कली पक्ष या हरि पक्ष?) | Narci | Hindi Rap Song (Prod. By Narci)
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Song: Kali Paksh Ya Hari Paksh? (कली पक्ष या हरि पक्ष?)
Rap: Narci
Rap Lyrics: Narci
Singer: Anupama
Vocals: Shri Indresh Upadhyay Ji
Music & Arrangement: Narci
Rap: Narci
Rap Lyrics: Narci
Singer: Anupama
Vocals: Shri Indresh Upadhyay Ji
Music & Arrangement: Narci
"यत् फलम् नास्ति तपसा न योगेन समाधिना, तत् फलम् लभते सम्यक् कलौ केशव कीर्तनात्" का अर्थ है—जो फल कठिन तपस्या, योग या गहन समाधि से भी अन्य युगों में प्राप्त नहीं होता था, वही फल कलियुग में केवल भगवान केशव (श्रीकृष्ण/हरि) के नाम कीर्तन से सहज ही प्राप्त हो जाता है। इस श्लोक का भाव यह है कि कलियुग में भगवान का नाम-स्मरण, भजन और कीर्तन सबसे सरल, प्रभावशाली और फलदायी साधना है, जिससे वह आध्यात्मिक लाभ, मोक्ष और पुण्य मिल सकता है, जो पूर्व युगों में कठिन साधनाओं से भी दुर्लभ था। इसलिए कलियुग में श्रीहरि के कीर्तन और नाम जप को सर्वोच्च साधना माना गया है।
कलियुग में भगवान के कीर्तन से ही फल मिलता है क्योंकि इस युग में अन्य युगों की अपेक्षा साधना के अन्य मार्ग—जैसे कठोर तप, यज्ञ, या गहन ध्यान—लोगों के लिए कठिन और लगभग असंभव हो गए हैं। शास्त्रों के अनुसार, सत्ययुग में भगवान विष्णु के ध्यान से, त्रेतायुग में यज्ञों से, और द्वापरयुग में भगवान की पूजा और सेवा से जो फल मिलता था, वही कलियुग में केवल भगवान के नाम-कीर्तन से सहजता से प्राप्त हो जाता है।
भगवान विष्णु को "नारायण" नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ है "जल जिसका प्रथम अयन (आश्रय) हो"। संस्कृत में "नर" का अर्थ जल या पानी से है और "अयन" का अर्थ स्थान या निवास। इसलिए नारायण का मतलब हुआ वह जो जल में निवास करता है। पुराणों के अनुसार, भगवान विष्णु क्षीरसागर (दूध के सागर) में रहते हैं, इसलिए उन्हें नारायण कहा जाता है। इसके अतिरिक्त, देवर्षि नारद भगवान विष्णु को इस नाम से पुकारते थे, जिससे यह नाम और भी प्रसिद्ध हुआ। नारायण का यह नाम उनके जल में निवास और जगत के पालनहार होने का प्रतीक है। इसके अलावा, भगवान विष्णु के अन्य प्रसिद्ध नामों में हरि (जो सभी दुखों को हरने वाला है), अच्युत (अमर और अविनाशी), पुरुषोत्तम (सर्वश्रेष्ठ पुरुष) आदि शामिल हैं। ये सभी नाम उनके विभिन्न गुणों और स्वरूपों को दर्शाते हैं। इस प्रकार, नारायण नाम भगवान विष्णु के दिव्य और सर्वव्यापी स्वरूप का एक महत्वपूर्ण परिचायक है।
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Author - Saroj Jangir
इस ब्लॉग पर आप पायेंगे मधुर और सुन्दर भजनों का संग्रह । इस ब्लॉग का उद्देश्य आपको सुन्दर भजनों के बोल उपलब्ध करवाना है। आप इस ब्लॉग पर अपने पसंद के गायक और भजन केटेगरी के भजन खोज सकते हैं....अधिक पढ़ें। |

