ओ वीणेवाली दया कर दानी भजन

ओ वीणेवाली दया कर दानी भजन

ओ वीणेवाली, दया कर दानी,
दो ज्ञान महारानी ।
तू अपने भगत को,
अंधकार से उबारो माँ जगत को ।।

ओ माता मेरी, शरण में हूँ तेरी,
न कर अब देरी ।
तू अपने भगत को,
अंधकार से उबारो माँ जगत को ।।

मैंने सुना है, ज्ञान देती हो सबको,
फिर भी ज्ञान नहीं देती ।
मैंने सुना है राग तुमने बनाया,
फिर क्यों राग नहीं देती ।।
ओ स्वर ज्ञान को, देने वाली,
सबकी वीणेवाली ।
ओ माँ रानी, तू ज्ञान की दानी,
हे शारदे भवानी ।
तू अपने भगत को,
अंधकार से उबारो माँ जगत को ।।

जग में है छाया, अज्ञान जननी,
आओगी कि नहीं मइया ।
बीच भँवर में, मैं हूँ फँसा माँ !
डूबती मेरी नइया ।।
ओ दुःखियों को, तारने वाली,
पार लगाने वाली ।
हे कल्यानी, तू है बड़ी दानी,
न कर नादानी ।
तू अपने भगत को,
अंधकार से उबारो माँ जगत को ।।

अज्ञान से है, बढ़ा पाप जननी,
ज्योति ज्ञान की बिखराओ ।
अज्ञानी है कान्त, करता नादानी,
माया से ना भरमाओ ।।
ओ माया को, हरने वाली,
ज्ञान को देने वाली ।
हे दयानी, हे शारदे भवानी !
हे जग कल्यानी ।
तू अपने भगत को,
अंधकार से उबारो माँ जगत को ।।

ओ वीणेवाली...


माँ वीणेवाली से प्रार्थना : ओ वीणेवाली ! रचना : दासानुदास श्रीकान्त दास जी महाराज//स्वर : आलोक जी ।

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माँ शारदा, ज्ञान की देवी, की कृपा वह ज्योति है, जो अज्ञान के अंधकार को चीर देती है। भक्त की पुकार उनके चरणों में यह याचना है कि वह दया कर, स्वर और राग का ज्ञान दें, ताकि मन माया के भँवर से निकलकर सत्य की राह पाए। जैसे कोई डूबती नाव को किनारे लगाने की आस रखता है, वैसे ही माँ से प्रार्थना है कि वह अज्ञान से उपजे पाप को मिटाए और ज्ञान की किरण बिखेरे। यह भक्ति का भाव है कि माँ कल्याणी, दयानी, और वीणावादिनी अपने भक्तों को नादानी से बचाकर, जगत को ज्ञान के प्रकाश से उबारती हैं। उनकी शरण में ही वह शक्ति है, जो हर दुखी और भटके मन को पार लगाती है, और जीवन को सार्थक बनाती है।
 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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