
भोले तेरी भक्ति का अपना ही
सुनत बिभीषन बचन राम के। हरषि गहे पद कृपाधाम के।। बानर भालु सकल हरषाने। गहि प्रभु पद गुन बिमल बखाने।। बहुरि बिभीषन भवन सिधायो। मनि गन बसन ...
प्रभु के बचन सीस धरि सीता। बोली मन क्रम बचन पुनीता।। लछिमन होहु धरम के नेगी। पावक प्रगट करहु तुम्ह बेगी।। सुनि लछिमन सीता कै बानी। बिरह ब...
पति सिर देखत मंदोदरी। मुरुछित बिकल धरनि खसि परी।। जुबति बृंद रोवत उठि धाईं। तेहि उठाइ रावन पहिं आई।। पति गति देखि ते करहिं पुकारा। छूटे क...
तेही निसि सीता पहिं जाई। त्रिजटा कहि सब कथा सुनाई।। सिर भुज बाढ़ि सुनत रिपु केरी। सीता उर भइ त्रास घनेरी।। मुख मलीन उपजी मन चिंता। त्रिजटा...
एहीं बीच निसाचर अनी। कसमसात आई अति घनी। देखि चले सन्मुख कपि भट्टा। प्रलयकाल के जनु घन घट्टा।। बहु कृपान तरवारि चमंकहिं। जनु दहँ दिसि दामि...
दसमुख देखि सिरन्ह कै बाढ़ी। बिसरा मरन भई रिस गाढ़ी।। गर्जेउ मूढ़ महा अभिमानी। धायउ दसहु सरासन तानी।। समर भूमि दसकंधर कोप्यो। बरषि बान रघुपति...
सुर ब्रह्मादि सिद्ध मुनि नाना। देखत रन नभ चढ़े बिमाना।। हमहू उमा रहे तेहि संगा। देखत राम चरित रन रंगा।। सुभट समर रस दुहु दिसि माते। कपि जय...
सक्ति सूल तरवारि कृपाना। अस्त्र सस्त्र कुलिसायुध नाना।। डारह परसु परिघ पाषाना। लागेउ बृष्टि करै बहु बाना।। दस दिसि रहे बान नभ छाई। मानहुँ...
कपि तव दरस भइउँ निष्पापा। मिटा तात मुनिबर कर सापा।। मुनि न होइ यह निसिचर घोरा। मानहु सत्य बचन कपि मोरा।। अस कहि गई अपछरा जबहीं। निसिचर नि...