गंगा मैया आरती ॐ जय गंगे माता
गंगा आरती-गंगा मैया आरती ॐ जय गंगे माता
हमारे लिए "गंगा" महज कोई नदी नहीं है, यह तो भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान है। इसे नदियों में सबसे पवित्र माना जाता है। यद्यपि हम सभी नदियों को आदर सम्मान के साथ देखते हैं क्यों की ये प्राण ऊर्जा हैं। जल ही हमारे जीवन का मूल आधार है और श्रष्टि की सभी वस्तुएं जल से जुडी हुई हैं। भारत में गंगा नदी से जीवन की उत्त्पति जुडी है। गंगा नदी पतित पावनि है जिसका भाव है की यह समस्त पापों का नाश कर देती है।
ओम जय गंगे माता
ओम जय गंगे माता,
श्री जय गंगे माता ।
जो नर तुझको ध्याता ,
मन वांछित फल पाता ।
चन्द्र सी जोत तुम्हारी ,
जल निर्मल आता ।
शरण पड़े जो तेरी ,
सो नर तर जाता ।
ओम जय गंगे माता।
पुत्र सगर के तारे ,
सब जग को ज्ञाता ।
कृपा दृष्टि तुम्हारी ,
त्रि भुवन सुख दाता ॥
ओम जय गंगे माता।
एक ही बार जो तेरी ,
शरणा गति आता ।
यम की त्रास मिटाकर ,
कर्म गति पाता ।
ओम जय गंगे माता।
आरती मात तुम्हारी ,
जो जन नित गाता ।
दास वही सहज में ,
मुक्ति को पाता ॥
ओम जय गंगे माता।
ओम जय गंगे माता,
श्री जय गंगे माता ।
जो नर तुझको ध्याता ,
मन वांछित फल पाता ।
चन्द्र सी जोत तुम्हारी ,
जल निर्मल आता ।
शरण पड़े जो तेरी ,
सो नर तर जाता ।
ओम जय गंगे माता।
पुत्र सगर के तारे ,
सब जग को ज्ञाता ।
कृपा दृष्टि तुम्हारी ,
त्रि भुवन सुख दाता ॥
ओम जय गंगे माता।
एक ही बार जो तेरी ,
शरणा गति आता ।
यम की त्रास मिटाकर ,
कर्म गति पाता ।
ओम जय गंगे माता।
आरती मात तुम्हारी ,
जो जन नित गाता ।
दास वही सहज में ,
मुक्ति को पाता ॥
ओम जय गंगे माता।
गंगा जी की आरती
ॐ जय गंगे माता, श्री गंगे माता |
जो नर तुमको ध्यावता, मनवंछित फल पाता |
चन्द्र सी ज्योत तुम्हारी जल निर्मल आता |
शरण पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता |
पुत्र सगर के तारे सब जग को ज्ञाता |
कृपा दृष्टि तुम्हारी, त्रिभुवन सुख दाता |
एक ही बार भी जो नर तेरी शरणगति आता |
यम की त्रास मिटा कर, परम गति पाता |
आरती मात तुम्हारी जो जन नित्य गाता |
दास वही जो सहज में मुक्ति को पाता |
ॐ जय गंगे माता |
ॐ जय गंगे माता, श्री गंगे माता |
जो नर तुमको ध्यावता, मनवंछित फल पाता |
चन्द्र सी ज्योत तुम्हारी जल निर्मल आता |
शरण पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता |
पुत्र सगर के तारे सब जग को ज्ञाता |
कृपा दृष्टि तुम्हारी, त्रिभुवन सुख दाता |
एक ही बार भी जो नर तेरी शरणगति आता |
यम की त्रास मिटा कर, परम गति पाता |
आरती मात तुम्हारी जो जन नित्य गाता |
दास वही जो सहज में मुक्ति को पाता |
ॐ जय गंगे माता |
ॐ जय गंगे माता, मैया जय गंगे माता।
जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता॥
ॐ जय गंगे माता॥
चन्द्र-सी ज्योति तुम्हारी, जल निर्मल आता।
शरण पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता॥
ॐ जय गंगे माता॥
पुत्र सगर के तारे, सब जग को ज्ञाता।
कृपा दृष्टि हो तुम्हारी, त्रिभुवन सुख दाता॥
ॐ जय गंगे माता॥
एक बार जो प्राणी, शरण तेरी आता।
यम की त्रास मिटाकर, परमगति पाता॥
ॐ जय गंगे माता॥
आरती मातु तुम्हारी, जो नर नित गाता।
सेवक वही सहज में, मुक्ति को पाता॥
जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता॥
ॐ जय गंगे माता॥
चन्द्र-सी ज्योति तुम्हारी, जल निर्मल आता।
शरण पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता॥
ॐ जय गंगे माता॥
पुत्र सगर के तारे, सब जग को ज्ञाता।
कृपा दृष्टि हो तुम्हारी, त्रिभुवन सुख दाता॥
ॐ जय गंगे माता॥
एक बार जो प्राणी, शरण तेरी आता।
यम की त्रास मिटाकर, परमगति पाता॥
ॐ जय गंगे माता॥
आरती मातु तुम्हारी, जो नर नित गाता।
सेवक वही सहज में, मुक्ति को पाता॥
श्री गंगा माता चालीसा
॥दोहा॥
जय जय जय जग पावनी, जयति देवसरि गंग।
जय शिव जटा निवासिनी, अनुपम तुंग तरंग॥
॥चौपाई॥
जय जय जननी हराना अघखानी।
आनंद करनी गंगा महारानी॥
जय भगीरथी सुरसरि माता।
कलिमल मूल डालिनी विख्याता॥
जय जय जहानु सुता अघ हनानी।
भीष्म की माता जगा जननी॥
धवल कमल दल मम तनु सजे।
लखी शत शरद चंद्र छवि लजाई॥ ४ ॥
वहां मकर विमल शुची सोहें।
अमिया कलश कर लखी मन मोहें॥
जदिता रत्ना कंचन आभूषण।
हिय मणि हर, हरानितम दूषण॥
जग पावनी त्रय ताप नासवनी।
तरल तरंग तुंग मन भावनी॥
जो गणपति अति पूज्य प्रधान।
इहूं ते प्रथम गंगा अस्नाना॥ ८ ॥
ब्रह्मा कमंडल वासिनी देवी।
श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवि॥
साथी सहस्त्र सागर सुत तरयो।
गंगा सागर तीरथ धरयो॥
अगम तरंग उठ्यो मन भवन।
लखी तीरथ हरिद्वार सुहावन॥
तीरथ राज प्रयाग अक्षैवेता।
धरयो मातु पुनि काशी करवत॥ १२ ॥
धनी धनी सुरसरि स्वर्ग की सीधी।
तरनी अमिता पितु पड़ पिरही॥
भागीरथी ताप कियो उपारा।
दियो ब्रह्म तव सुरसरि धारा॥
जब जग जननी चल्यो हहराई।
शम्भु जाता महं रह्यो समाई॥
वर्षा पर्यंत गंगा महारानी।
रहीं शम्भू के जाता भुलानी॥ १६ ॥
पुनि भागीरथी शम्भुहीं ध्यायो।
तब इक बूंद जटा से पायो॥
ताते मातु भें त्रय धारा। मृत्यु लोक,
नाभा, अरु पातारा॥
गईं पाताल प्रभावती नामा।
मन्दाकिनी गई गगन ललामा॥
मृत्यु लोक जाह्नवी सुहावनी।
कलिमल हरनी अगम जग पावनि॥ २० ॥
धनि मइया तब महिमा भारी।
धर्मं धुरी कलि कलुष कुठारी॥
मातु प्रभवति धनि मंदाकिनी।
धनि सुर सरित सकल भयनासिनी॥
पन करत निर्मल गंगा जल।
पावत मन इच्छित अनंत फल॥
पुरव जन्म पुण्य जब जागत।
तबहीं ध्यान गंगा म लागत॥ २४ ॥
जई पगु सुरसरी हेतु उठावही।
तई जगि अश्वमेघ फल पावहि॥
महा पतित जिन कहू न तारे।
तिन तारे इक नाम तिहारे॥
शत योजन हूं से जो ध्यावहिं।
निशचाई विष्णु लोक पद पावहीं॥
नाम भजत अगणित अघ नाशै।
विमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशे॥ २८ ॥
जिमी धन मूल धर्मं अरु दाना।
धर्मं मूल गंगाजल पाना॥
तब गुन गुणन करत दुख भाजत।
गृह गृह सम्पति सुमति विराजत॥
गंगहि नेम सहित नित ध्यावत।
दुर्जनहूं सज्जन पद पावत॥
उद्दिहिन विद्या बल पावै।
रोगी रोग मुक्त हवे जावै॥ ३२ ॥
गंगा गंगा जो नर कहहीं।
भूखा नंगा कभुहुह न रहहि॥
निकसत ही मुख गंगा माई।
श्रवण दाबी यम चलहिं पराई॥
महं अघिन अधमन कहं तारे।
भए नरका के बंद किवारें॥
जो नर जपी गंग शत नामा।
सकल सिद्धि पूरण ह्वै कामा॥ ३६ ॥
सब सुख भोग परम पद पावहीं।
आवागमन रहित ह्वै जावहीं॥
धनि मइया सुरसरि सुख दैनि।
धनि धनि तीरथ राज त्रिवेणी॥
ककरा ग्राम ऋषि दुर्वासा।
सुन्दरदास गंगा कर दासा॥
जो यह पढ़े गंगा चालीसा।
मिली भक्ति अविरल वागीसा॥ ४० ॥
॥ दोहा ॥
नित नए सुख सम्पति लहैं। धरें गंगा का ध्यान।
अंत समाई सुर पुर बसल। सदर बैठी विमान॥
संवत भुत नभ्दिशी। राम जन्म दिन चैत्र।
॥दोहा॥
जय जय जय जग पावनी, जयति देवसरि गंग।
जय शिव जटा निवासिनी, अनुपम तुंग तरंग॥
॥चौपाई॥
जय जय जननी हराना अघखानी।
आनंद करनी गंगा महारानी॥
जय भगीरथी सुरसरि माता।
कलिमल मूल डालिनी विख्याता॥
जय जय जहानु सुता अघ हनानी।
भीष्म की माता जगा जननी॥
धवल कमल दल मम तनु सजे।
लखी शत शरद चंद्र छवि लजाई॥ ४ ॥
वहां मकर विमल शुची सोहें।
अमिया कलश कर लखी मन मोहें॥
जदिता रत्ना कंचन आभूषण।
हिय मणि हर, हरानितम दूषण॥
जग पावनी त्रय ताप नासवनी।
तरल तरंग तुंग मन भावनी॥
जो गणपति अति पूज्य प्रधान।
इहूं ते प्रथम गंगा अस्नाना॥ ८ ॥
ब्रह्मा कमंडल वासिनी देवी।
श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवि॥
साथी सहस्त्र सागर सुत तरयो।
गंगा सागर तीरथ धरयो॥
अगम तरंग उठ्यो मन भवन।
लखी तीरथ हरिद्वार सुहावन॥
तीरथ राज प्रयाग अक्षैवेता।
धरयो मातु पुनि काशी करवत॥ १२ ॥
धनी धनी सुरसरि स्वर्ग की सीधी।
तरनी अमिता पितु पड़ पिरही॥
भागीरथी ताप कियो उपारा।
दियो ब्रह्म तव सुरसरि धारा॥
जब जग जननी चल्यो हहराई।
शम्भु जाता महं रह्यो समाई॥
वर्षा पर्यंत गंगा महारानी।
रहीं शम्भू के जाता भुलानी॥ १६ ॥
पुनि भागीरथी शम्भुहीं ध्यायो।
तब इक बूंद जटा से पायो॥
ताते मातु भें त्रय धारा। मृत्यु लोक,
नाभा, अरु पातारा॥
गईं पाताल प्रभावती नामा।
मन्दाकिनी गई गगन ललामा॥
मृत्यु लोक जाह्नवी सुहावनी।
कलिमल हरनी अगम जग पावनि॥ २० ॥
धनि मइया तब महिमा भारी।
धर्मं धुरी कलि कलुष कुठारी॥
मातु प्रभवति धनि मंदाकिनी।
धनि सुर सरित सकल भयनासिनी॥
पन करत निर्मल गंगा जल।
पावत मन इच्छित अनंत फल॥
पुरव जन्म पुण्य जब जागत।
तबहीं ध्यान गंगा म लागत॥ २४ ॥
जई पगु सुरसरी हेतु उठावही।
तई जगि अश्वमेघ फल पावहि॥
महा पतित जिन कहू न तारे।
तिन तारे इक नाम तिहारे॥
शत योजन हूं से जो ध्यावहिं।
निशचाई विष्णु लोक पद पावहीं॥
नाम भजत अगणित अघ नाशै।
विमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशे॥ २८ ॥
जिमी धन मूल धर्मं अरु दाना।
धर्मं मूल गंगाजल पाना॥
तब गुन गुणन करत दुख भाजत।
गृह गृह सम्पति सुमति विराजत॥
गंगहि नेम सहित नित ध्यावत।
दुर्जनहूं सज्जन पद पावत॥
उद्दिहिन विद्या बल पावै।
रोगी रोग मुक्त हवे जावै॥ ३२ ॥
गंगा गंगा जो नर कहहीं।
भूखा नंगा कभुहुह न रहहि॥
निकसत ही मुख गंगा माई।
श्रवण दाबी यम चलहिं पराई॥
महं अघिन अधमन कहं तारे।
भए नरका के बंद किवारें॥
जो नर जपी गंग शत नामा।
सकल सिद्धि पूरण ह्वै कामा॥ ३६ ॥
सब सुख भोग परम पद पावहीं।
आवागमन रहित ह्वै जावहीं॥
धनि मइया सुरसरि सुख दैनि।
धनि धनि तीरथ राज त्रिवेणी॥
ककरा ग्राम ऋषि दुर्वासा।
सुन्दरदास गंगा कर दासा॥
जो यह पढ़े गंगा चालीसा।
मिली भक्ति अविरल वागीसा॥ ४० ॥
॥ दोहा ॥
नित नए सुख सम्पति लहैं। धरें गंगा का ध्यान।
अंत समाई सुर पुर बसल। सदर बैठी विमान॥
संवत भुत नभ्दिशी। राम जन्म दिन चैत्र।
पूरण चालीसा किया। हरी भक्तन हित नेत्र॥
गंगा माता का पवित्र जल जीवन को शुद्ध करता है, जैसे चंद्रमा की किरणें अंधेरे को मिटाती हैं। जो मन से गंगा को ध्याता है, उसका हृदय इच्छाओं का फल पाता है। उनकी शरण में आने वाला हर प्राणी डर से मुक्त हो, पार उतर जाता है, जैसे नाव किनारे को छू लेती है। सगर के पुत्रों को तारने वाली गंगा की कृपा तीनों लोकों में सुख बरसाती है।
एक बार भी जो उनकी शरण ले, यम का भय उससे दूर हो जाता है, और वह परम गति को पाता है। गंगा की आरती गाने वाला भक्त सहज ही मुक्ति का द्वार खोल लेता है, जैसे फूल अपनी सुगंध से सबको मोह लेता है। गंगा माता सिर्फ नदी नहीं, करुणा और मोक्ष की साक्षात मूर्ति हैं। उनके जल में डुबकी लगाओ, मन को निर्मल करो, क्योंकि गंगा की गोद में सारा पाप धुल जाता है।
एक बार भी जो उनकी शरण ले, यम का भय उससे दूर हो जाता है, और वह परम गति को पाता है। गंगा की आरती गाने वाला भक्त सहज ही मुक्ति का द्वार खोल लेता है, जैसे फूल अपनी सुगंध से सबको मोह लेता है। गंगा माता सिर्फ नदी नहीं, करुणा और मोक्ष की साक्षात मूर्ति हैं। उनके जल में डुबकी लगाओ, मन को निर्मल करो, क्योंकि गंगा की गोद में सारा पाप धुल जाता है।
Song: Jai Gange Mata (Aarti)
Title: Ganga Gomukh Se Jab Dole
Singer: Anuradha Paudwal
Music Director: Mahesh Prabhakar
Lyricist: Sajan Sahari, Sandeep
Music Label: T-Series
Title: Ganga Gomukh Se Jab Dole
Singer: Anuradha Paudwal
Music Director: Mahesh Prabhakar
Lyricist: Sajan Sahari, Sandeep
Music Label: T-Series
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Author - Saroj Jangir
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