आ सहेल्हां रली करां भजन

आ सहेल्हां रली करां भजन

आ सहेल्हां रली करां है पर घर गवण निवारि।।
झूठा माणिक मोतिया री झूठी जगमग जोति।
झूठा आभूषण री सांची पियाजी री प्रीति।।
झूठा पाट पटंबरा रे झूठा दिखडणी चीर।
सांची पियाजी री गूदडी जामें निरमल रहे सरीर।।
छपन भोग बुहाय देहे इण भोगन में दाग।
लूण अलूणो ही भलो है अपणे पियाजीरो साग।।
देखि बिराणे निवांणकूं है क्यूं उपजावे खीज।
कालर अपणो ही भलो है जामें निपजै चीज।।
छैल बिराणो लाखको है अपणे काज न होय।
ताके संग सीधारतां है भला न कहसी कोय।।
बर हीणो अपणो भलो है कोढी कुष्टी कोय।
जाके संग सीधारतां है भला कहै सब लोय।।
अबिनासीसूं बालबा हे जिनसूं सांची प्रीत।
मीरा कूं प्रभुजी मिल्या है ए ही भगतिकी रीत।।२।।


शब्दार्थ - रली करां आनन्द मनायें। गवण जाना-आना। दिखणी दक्षिणी दक्षिण में बननेवाला एक कीमती वस्त्र। चीर साडी। बुहाय देहे बहा दो दाग दोष।अलूणो बिना नमक का। बिराणे पराये। निवांण उपजाऊ जमीन। खीज द्वेष। कांकर कंकरीली जमीन। लाखको लाखों का अनमोल। हीणो हीन


आ सहेल्हां रली करां

मीरा का यह भजन सांसारिक मोह की नश्वरता और हरि के प्रति सच्ची भक्ति का गहन दर्शन है। वह सहेलियों को समझाती है—संसार के झूठे माणिक, मोती, आभूषण, और जगमगाहट का त्याग कर, सच्ची प्रीति हरि के साथ जोड़ो। झूठे हैं रेशमी वस्त्र, सच्ची है पिया की गूदड़ी, जिसमें शरीर और आत्मा निर्मल रहते हैं।

छप्पन भोगों में दाग लगता है, पर हरि का सादा लूण-अलूणो साग ही श्रेष्ठ है। बिराने की निंदा से खीजने की बजाय, अपने कालर (हरि) की भक्ति में रमो, जो सदा सार्थक है। लाख छैल-छबीले बिराने हों, वे काम न आएँ, पर कोढ़ी-कुष्टी भी अगर अपने हों, तो दुनिया उनकी प्रशंसा करती है। मीरा कहती है—अविनाशी हरि से सच्ची प्रीति जोड़ो, यही भक्ति की रीत है।

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