जागो म्हांरा जगपतिरायक भजन

जागो म्हांरा जगपतिरायक भजन

जागो म्हांरा जगपतिरायक हंस बोलो क्यूं नहीं।।
हरि छो जी हिरदा माहिं पट खोलो क्यूं नहीं।।
तन मन सुरति संजो सीस चरणां धरूं।
जहां जहां देखूं म्हारो राम तहां सेवा करूं।।
सदकै करूं जी सरीर जुगै जुग वारणैं।
छोडी छोडी लिखूं सिलाम बहोत करि जानज्यौ।
बंदी हूं खानाजाद महरि करि मानज्यौ।।
हां हो म्हारा नाथ सुनाथ बिलम नहिं कीजिये।
मीरा चरणां की दासि दरस फिर दीजिये।। 
 
शब्दार्थ - छो हो। सदकै न्योछावर होना । वारणै न्योछावर कर दूं। सिलाम सलाम करना, अभिवादन। बन्दी दासी। खाना-जाद जन्म से ही घर में पली हु। महरि मेहर कृपा। मानज्यौ मान लेना।


 Jaago bansivaare lalna - Meera Bhajan - Music and Singing by S Janaki

मीरा का यह भजन हरि के प्रति उनकी तीव्र भक्ति और दरसन की तड़प का हृदयस्पर्शी स्वर है। वह जगत के स्वामी, अपने हृदय में बसे राम को पुकारती है—जागो, हँसकर बोलो, मेरे मन के पट खोलो। मीरा का तन-मन, सारी चेतना राम के चरणों में समर्पित है। वह कहती है—जहाँ देखूँ, वहाँ राम हैं, और मैं उनकी सेवा में डूब जाऊँ।

अपने शरीर को सदा-सदा राम को अर्पित कर, वह बार-बार उनकी भक्ति में लीन होने की याचना करती है। मीरा स्वयं को हरि की बाँदी, उनकी खानाजाद कहती है, और उनकी कृपा की भीख माँगती है। वह प्रार्थना करती है—हे नाथ, देर न करो, अपनी दासी को फिर से दरसन दो। यह भजन सिखाता है कि सच्ची भक्ति में सारा अहम् मिट जाता है। मीरा की तरह हरि के चरणों में डूब जाओ, सच्चे मन से पुकारो, राम सदा दरसन देते हैं।
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