छोड मत जाज्यो जी महाराज।।
मैं अबला बल नायं गुसाईं तुमही मेरे सिरताज।
मैं गुणहीन गुण नांय गुसाईं तुम समरथ महाराज।।
थांरी होयके किणरे जाऊं तुमही हिबडारो साज।
मीरा के प्रभु और न को राखो अबके लाज।।
मीराबाई के भजन "छोड़ मत जाज्यो जी महाराज" में भक्त अपने आराध्य से विनती करती हैं कि वे उन्हें न छोड़ें। इस भजन की प्रत्येक पंक्ति का सरल हिंदी में अर्थ इस प्रकार है: छोड़ मत जाज्यो जी महाराज। हे महाराज (प्रभु), मुझे छोड़कर मत जाइए।
मैं अबला बल नायं गुसाईं, तुमही मेरे सिरताज। मैं एक निर्बल नारी हूँ, हे स्वामी, आप ही मेरे स्वामी (पति) हैं।
मैं गुणहीन गुण नांय गुसाईं, तुम समरथ महाराज। मैं गुणहीन हूँ, मुझमें कोई गुण नहीं है, हे स्वामी, आप ही समर्थ महाराज हैं।
थांरी होयके किणरे जाऊं, तुमही हिबडारो साज। आपकी होकर मैं और कहाँ जाऊँगी? आप ही मेरे जीवन के सहारे हैं।
मीरा के प्रभु और न कोई, राखो अबके लाज। मीरा के प्रभु, आपके सिवा मेरा कोई नहीं है; अब मेरी लाज रखिए।
इस भजन में मीराबाई ने अपने आराध्य भगवान कृष्ण से प्रार्थना की है कि वे उन्हें न छोड़ें, क्योंकि वे ही उनके जीवन का आधार हैं। मीराबाई स्वयं को निर्बल और गुणहीन मानती हैं, और भगवान को सर्वसमर्थ मानकर उनकी शरण में हैं।