गुरु बिन घोर अँधेरा संतो लिरिक्स Guru Bin Ghor Andhera Bhajan Lyrics, Rajasthani Kabir Guru bhajan Lyrics
गुरु बिन घोर अँधेरा संतो ,गुरु बिन घोर अँधेरा जी,बिना दीपक मंदरियो सुनो , अब नहीं वास्तु का वेरा हो जी,
जब तक कन्या रेवे कवारी, नहीं पुरुष का वेरा जी,
आठो पोहर आलस में खेले , अब खेले खेल घनेरा हो जी,
मिर्गे री नाभि बसे किस्तूरी , नहीं मिर्गे को वेरा जी,
रनी वनी में फिरे भटकतो , अब सूंघे घास घणेरा हो जी,
जब तक आग रेवे पत्थर में , नहीं पत्थर को वेरा जी,
चकमक छोटा लागे शबद री , अब फेके आग चोपेरा हो जी,
रामानंद मिलिया गुरु पूरा ,दिया शबद तत्सारा जी,
कहत कबीर सुनो भाई संतो , अब मिट गया भरम अँधेरा हो जी,
कबीर साहब के इस भजन में गुरु के महत्व पर प्रकाश डाला गया है और गुरु के ज्ञान के बिना जीवन को भी एक तरह से अँधेरा घोषित किया है। गुरु के बिना जीवन अंधकारमय है। जैसे बिना दीपक के मंदिर में अंधकार होता है, वैसे ही बिना गुरु के जीवन में अज्ञानता का अंधकार होता है।
जब तक कन्या अविवाहित है, तब तक उसे पुरुष का बोध नहीं होता है। इसी प्रकार, जब तक मनुष्य आलसी है, तब तक उसे ज्ञान का बोध नहीं होता है।कर सकते हैं। अतः विभिन्न उदाहरणों के आधार पर कबीर साहेब गुरु के महत्त्व को स्थापित करते हैं.
जब तक कन्या अविवाहित है, तब तक उसे पुरुष का बोध नहीं होता है। इसी प्रकार, जब तक मनुष्य आलसी है, तब तक उसे ज्ञान का बोध नहीं होता है।कर सकते हैं। अतः विभिन्न उदाहरणों के आधार पर कबीर साहेब गुरु के महत्त्व को स्थापित करते हैं.