करमाँ रो संगाती राणा कोई नहीं

करमाँ रो संगाती राणा कोई नहीं

करमाँ रो संगाती राणा कोई नहीं
लाग्यो लाग्यो राम भजन से हेत
एक माँटी रा दोय घड़कल्या, जाँरो न्यारो न्यारो भाग।
एक सदाशिव कै जल चढ़ै, दूजो शमशाणा मँ जाय

एक गऊ का दोय बाछड़ा, जाँरो न्यारो न्यारो भाग।
एक सदाशिव कै नाँदियो, दूजो बिणजारै रो बैल
एक मायड़ रै दोय डीकरा, जाँरो न्यारो न्यारो भाग
एक राजेश्वर राजवी, दूजो साधुड़ाँ रै लार
राठौड़ाँ रै मीरा बाई जलमिया, बानै बैकुण्ठाँ रा बास

Karmno Sangathi Rana Maru Koi Nathi | Gitaben Rabari |

जीवन का सच यही है कि कर्म ही सच्चा साथी है, जो हर कदम पर भाग्य को आकार देता है। मीरा का राम भजन इस सत्य को उजागर करता है कि प्रेम और भक्ति से बढ़कर कोई धन नहीं। जैसे एक ही मिट्टी के दो घड़ों का भाग अलग-अलग होता है—एक शिव पर जल चढ़ता है, दूसरा शमशान की राह लेता है—वैसे ही मनुष्य का मार्ग उसके कर्म और भक्ति से तय होता है। यह सिखाता है कि जीवन की दिशा हमारी अपनी पसंद पर टिकी है।

एक ही गाय के बछड़ों का भाग भी जुदा है—एक शिव की नांदी बनता है, दूसरा बोझ ढोने वाला बैल। यह चिंतन मन को यह शिक्षा देता है कि सांसारिक रिश्ते और जन्म एक हो सकते हैं, पर कर्म और भक्ति ही अंतिम गति तय करते हैं। मीरा का जन्म राठौड़ कुल में हुआ, पर उनका मन राम के प्रेम में रमा। वह राजमहल की रानी नहीं, बल्कि बैकुंठ की बासिंद बन गईं।

उनका जीवन यह संदेश देता है कि भक्ति का रास्ता चुनने वाला संसार की माया से ऊपर उठ जाता है। जैसे एक भाई राजा बनता है और दूसरा साधु, वैसे ही मीरा ने भजन का हेत अपनाकर अपने भाग्य को अनंत बना लिया। यह प्रेम और समर्पण हर भक्त को प्रेरित करता है कि सच्चा सुख राम की शरण में ही है।
 
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