मंगल की मूल भवानी शरणा तेरा है भजन

मंगल की मूल भवानी शरणा तेरा है भजन

मंगल की मूल भवानी शरणा तेरा है,
मंगल की मूल भवानी शरणा तेरा है,
शरणा तेरा है, आसरा तेरा है, शरणा तेरा है,
मंगल की मूल भवानी शरणा तेरा है।

मैया है ब्रह्मा की पुतरी, लेकर ज्ञान सवर्ग से उतरी,
आज तेरी कथा बनाय देई सुथरी, प्रथम मनाया है,
मंगल की मूल भवानी शरणा तेरा है।

मैया भवन बणा जाली का, हार गूंथ ल्याया है माली का,
हो ध्यान घर कलकत्ते वाली का, पुष्प चढ़ाया है,
मंगल की मूल भवानी शरणा तेरा है।

मैया महिषासुर को मर्या, अपने बल से धरण पछाड्या,
हो हाथ लिये खाण्डा दुघारा, असुर संघार्या है,
मंगल की मूल भवानी शरणा तेरा है।

कहता शंकर जटोली वाला, हरदम रटे गुरां की माला,
हो खोल मेरे हृदय का ताला, विद्या बर पाया है,
मंगल की मूल भवानी शरणा तेरा है।



मंगल की मूल भवानी शरणा तेरा है बाबोजी श्री रत्तिनाथ जी कुचामन से Sant shri ratinath ji maharaj Badal matoliya

Mangal Kee Mool Bhavaanee Sharana Tera Hai,
Mangal Kee Mool Bhavaanee  Sharana Tera Hai,
Sharana Tera Hai, Aasara Tera Hai, Sharana Tera Hai,
Mangal Kee Mool Bhavaanee  Sharana Tera Hai.

माँ भवानी की शरण में एक ऐसी शक्ति है, जो हर भक्त को आधार देती है, जैसे कोई विशाल वृक्ष अपनी छाँव में सबको आश्रय दे। उनका नाम लेते ही मन में मंगल का भाव जागता है, और जीवन की हर बाधा छोटी लगने लगती है। माँ, ब्रह्मा की पुत्री, स्वर्ग से ज्ञान लेकर धरती पर अवतरित हुईं, यह सिखाती हैं कि सच्चा ज्ञान ही जीवन का प्रकाश है।

उनके भवन में फूल चढ़ाने का कार्य, जैसे कलकत्ते वाली माँ का ध्यान, हृदय को पवित्र करता है, मानो मन का हर कोना सुगंधित हो जाए। एक संत की तरह यह भक्ति हमें सिखाती है कि सादगी से किया गया भक्तिपूर्ण कार्य माँ तक पहुँचता है। एक चिंतक के दृष्टिकोण से,-iron माँ का महिषासुर-वध हमें भीतर के अहंकार और अज्ञान को हरने की प्रेरणा देता है। धर्मगुरु की सीख यही है कि माँ की कृपा से बुराइयों पर विजय पाई जा सकती है, जैसे खड्ग लिए माँ ने असुरों का संहार किया।

उदाहरण लें, जैसे कोई ताला खुलने से बंद कोष खुल जाता है, वैसे ही माँ की भक्ति हृदय का ताला खोलकर विद्या और शांति प्रदान करती है। शंकर का माला जपना हमें याद दिलाता है कि माँ की शरण में निरंतर भक्ति ही जीवन को सार्थक बनाती है। उनकी शरण में आकर भक्त का हर दुख मिटता है, और मन में केवल मंगलमय भाव रह जाता है।

Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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