स्याम मने चाकर राखो जी भजन
स्याम मने चाकर राखो जी भजन
स्याम मने चाकर राखो जी। गिरधारीलाल चाकर राखो जी।।
चाकर रहसूं बाग लगासूं नित उठ दरसण पासूं।
बिंद्राबन की कुंज गलिन में तेरी लीला गासूं।।
चाकरी में दरसण पाऊं सुमिरण पाऊं खरची।
भाव भगति जागीरी पाऊं तीनूं बातां सरसी।।
मोर मुगट पीतांबर सोहे गल बैजंती माला।
बिंद्राबन में धेनु चरावे मोहन मुरलीवाला।
हरे हरे नित बाग लगाऊंबिच बिच राखूं क्यारी।
सांवरियाके दरसण पाऊंपहर कुसुम्मी सारी।।
बिंद्राबन की कुंज गलिन में तेरी लीला गासूं।।
चाकरी में दरसण पाऊं सुमिरण पाऊं खरची।
भाव भगति जागीरी पाऊं तीनूं बातां सरसी।।
मोर मुगट पीतांबर सोहे गल बैजंती माला।
बिंद्राबन में धेनु चरावे मोहन मुरलीवाला।
हरे हरे नित बाग लगाऊंबिच बिच राखूं क्यारी।
सांवरियाके दरसण पाऊंपहर कुसुम्मी सारी।।
जोगि आया जोग करणकूं तप करणे संन्यासी।
हरी भजनकूं साधू आया बिंद्राबनके बासी।।
मीराके प्रभु गहिर गंभीरा सदा रहो जी धीरा।
आधी रात प्रभु दरसन दीन्हें प्रेम नदी के तीरा।।
हरी भजनकूं साधू आया बिंद्राबनके बासी।।
मीराके प्रभु गहिर गंभीरा सदा रहो जी धीरा।
आधी रात प्रभु दरसन दीन्हें प्रेम नदी के तीरा।।
शब्दार्थ - मने मुझको। लगासूं लगाऊंगी। गासूं गुण गाऊंगी। खरची रोज के लि खर्चा। सरसी अच्छी से अच्छी। गहिरगंभीरा शान्त स्वभाव के। रहो धीरा विश्वास रखो। तीरा किनारा क्षेत्र।
Shyam Mane Chakar Rakho Ji - Hema Malini - Meera - Vani Jairam - Hindi Devotional Songs
भजन मीरा की हरि भक्ति और श्याम के प्रति समर्पण का अनुपम गीत है। मीरा स्वयं को श्याम का चाकर कहती है, गिरधारीलाल की सेवा में जीवन अर्पित करने को तत्पर। वह कहती है—मैं बाग लगाऊँ, वृंदावन की गलियों में उनकी लीला गाऊँ, उनके दर्शन और स्मरण में डूबूँ। चाकरी में दर्शन, स्मरण में खर्ची, और भक्ति की जागीर—यही तीनों उसे सुखद लगते हैं।
मोरमुकुट, पीतांबर, और बैजयंती माला में सजे श्याम, मुरली बजाते, धेनु चराते, वृंदावन में बिराजते हैं। मीरा उनके दर्शन को कुसुम की साड़ी पहन, बाग-क्यारी सजाती है। योगी योग को, सन्यासी तप को, साधु हरि भजन को आते हैं, पर मीरा का मन तो बस श्याम के प्रेम में डूबा है। आधी रात, प्रेम नदी के तीर पर श्याम दर्शन देते हैं, गंभीर और धीर।
मोरमुकुट, पीतांबर, और बैजयंती माला में सजे श्याम, मुरली बजाते, धेनु चराते, वृंदावन में बिराजते हैं। मीरा उनके दर्शन को कुसुम की साड़ी पहन, बाग-क्यारी सजाती है। योगी योग को, सन्यासी तप को, साधु हरि भजन को आते हैं, पर मीरा का मन तो बस श्याम के प्रेम में डूबा है। आधी रात, प्रेम नदी के तीर पर श्याम दर्शन देते हैं, गंभीर और धीर।
जीवन का सच्चा सुख और शांति भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण में निहित है। मनुष्य का मन जब सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर प्रभु की शरण में जाता है, तब वह एक नन्हा सेवक बनकर उनकी सेवा में लीन हो जाता है। यह सेवा कोई बंधन नहीं, बल्कि मुक्ति का मार्ग है, जहाँ हर कार्य—चाहे वह बाग लगाना हो, फूल चुनना हो, या वृंदावन की गलियों में भगवान की लीलाओं का गान करना हो—प्रेम और भक्ति से ओतप्रोत हो जाता है। जैसे एक माली प्रेम से क्यारी सजाता है, वैसे ही भक्त अपने हृदय को भगवान के लिए सजाता है, ताकि हर पल उनकी उपस्थिति का अनुभव हो।
यह समर्पण केवल बाहरी कार्यों तक सीमित नहीं, बल्कि अंतर्मन की गहराई में उतरता है। भक्ति में डूबा मन प्रभु का स्मरण ही अपनी सबसे बड़ी संपत्ति मानता है। जैसे कोई सच्चा सेवक अपने स्वामी की सेवा में ही सुख पाता है, वैसे ही भक्त को प्रभु के दर्शन, उनका स्मरण और उनकी भक्ति में ही परम तृप्ति मिलती है। यह भक्ति ऐसी जागीर है, जो कभी नष्ट नहीं होती।
वृंदावन की छवि, जहाँ श्रीकृष्ण मोर मुकुट और पीतांबर धारण कर, मुरली बजाते हुए गायों को चराते हैं, मन को एक अलौकिक शांति देती है। यह दृश्य केवल बाहरी नहीं, बल्कि आत्मा का आह्वान है कि वह सांसारिक मोह छोड़कर प्रभु के प्रेम में डूब जाए। भक्ति का यह मार्ग सभी के लिए खुला है—चाहे वह योगी हो, सन्यासी हो, या साधारण साधक। हर कोई अपने तरीके से प्रभु की शरण में आ सकता है।
रात की गहराई में, जब दुनिया सो रही होती है, प्रभु का दर्शन प्रेम की नदी के किनारे होता है। यह प्रेम ही वह धारा है, जो मन को स्थिर और गंभीर बनाती है। सच्ची भक्ति वही है, जो मन को धीरे-धीरे प्रभु के रंग में रंग देती है, ताकि हर क्षण, हर कार्य में केवल उनकी छवि दिखाई दे। यह जीवन का वह सत्य है, जो भटके हुए मन को प्रभु के चरणों में लाकर शांति और प्रेम से भर देता है।
यह समर्पण केवल बाहरी कार्यों तक सीमित नहीं, बल्कि अंतर्मन की गहराई में उतरता है। भक्ति में डूबा मन प्रभु का स्मरण ही अपनी सबसे बड़ी संपत्ति मानता है। जैसे कोई सच्चा सेवक अपने स्वामी की सेवा में ही सुख पाता है, वैसे ही भक्त को प्रभु के दर्शन, उनका स्मरण और उनकी भक्ति में ही परम तृप्ति मिलती है। यह भक्ति ऐसी जागीर है, जो कभी नष्ट नहीं होती।
वृंदावन की छवि, जहाँ श्रीकृष्ण मोर मुकुट और पीतांबर धारण कर, मुरली बजाते हुए गायों को चराते हैं, मन को एक अलौकिक शांति देती है। यह दृश्य केवल बाहरी नहीं, बल्कि आत्मा का आह्वान है कि वह सांसारिक मोह छोड़कर प्रभु के प्रेम में डूब जाए। भक्ति का यह मार्ग सभी के लिए खुला है—चाहे वह योगी हो, सन्यासी हो, या साधारण साधक। हर कोई अपने तरीके से प्रभु की शरण में आ सकता है।
रात की गहराई में, जब दुनिया सो रही होती है, प्रभु का दर्शन प्रेम की नदी के किनारे होता है। यह प्रेम ही वह धारा है, जो मन को स्थिर और गंभीर बनाती है। सच्ची भक्ति वही है, जो मन को धीरे-धीरे प्रभु के रंग में रंग देती है, ताकि हर क्षण, हर कार्य में केवल उनकी छवि दिखाई दे। यह जीवन का वह सत्य है, जो भटके हुए मन को प्रभु के चरणों में लाकर शांति और प्रेम से भर देता है।
Movie: Meera
Music Director: Pt. Ravi Shankar
Singers: Vani Jairam
Director: Gulzar
Music Director: Pt. Ravi Shankar
Singers: Vani Jairam
Director: Gulzar