व्रकतुंड महाकाय सूर्यकोटी समप्रभाः

व्रकतुंड महाकाय सूर्यकोटी समप्रभाः भजन

 
Vakratunda Mahakay Bhajan

व्रकतुंड महाकाय,
सूर्यकोटी समप्रभाः।
निर्वघ्नं कुरु मे देव,
सर्वकार्येरुषु सवर्दा॥
जय गणेश, जय गणेश,
जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा॥
एक दन्त दयावंत,
चार भुजा धारी।
माथे पर तिलक सोहे
मुसे की सवारी॥
पान चढ़े फुल चढ़े,
और चढ़े मेवा।
लड्डुवन का भोग लगे,
संत करे सेवा॥
अंधन को आँख देत,
कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत
निर्धन को माया॥
सुर श्याम शरण आये,
सफल किजे सेवा।
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा॥
जय गणेश, जय गणेश,
जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा॥
व्रकतुंड महाकाय,
सूर्यकोटी समप्रभाः।
निर्वघ्नं कुरु मे देव,
सर्वकार्येरुषु सवर्दा॥


वक्रतुंड महाकाय, सूर्यकोटि समप्रभाः। निर्विघ्नं कुरु मे देव, सर्वकार्येषु सर्वदा॥

यह मंत्र भगवान गणेश को समर्पित है। यह मंत्र संस्कृत में है और इसका अर्थ इस प्रकार है:

वक्रतुंड - जिनके सूंड घुमावदार है
महाकाय - जिनका शरीर विशाल है
सूर्यकोटि समप्रभाः - जिनका तेज करोड़ों सूर्यों के समान है
निर्विघ्नं कुरु मे देव - हे देव, मेरे सभी कार्यों को बिना किसी बाधा के पूर्ण करें
सर्वकार्येषु सर्वदा - सभी कार्यों में हमेशा

यह मंत्र भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने और अपने जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए जप किया जाता है। यह मंत्र भगवान गणेश की शक्ति और क्षमताओं को दर्शाता है।
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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