अखियां खोलो तो हरी देवउठनी ग्यारस आई

अखियां खोलो तो हरी देवउठनी ग्यारस आई

अखियां खोलो तो हरी, देवउठनी ग्यारस आई,
देवउठनी ग्यारस आई, शुभ मंगल ग्यारस आई।
अखियां खोलो तो हरी, देवउठनी ग्यारस है।।
(1)

हाथों में मेरे, गंगाजल लोटा,
अखियां खोलो तो हरी, तुमरे चरण धुलाने आई।
अखियां खोलो तो हरी, देवउठनी ग्यारस है।।
(2)

हाथ में मेरे, चंदन कटोरी,
अखियां खोलो तो हरी, मैं तो तिलक लगाने आई।
अखियां खोलो तो हरी, देवउठनी ग्यारस है।।
(3)

हाथ में मेरे, फूलों की माला,
अखियां खोलो तो हरी, मैं तो हार पहनाने आई।
अखियां खोलो तो हरी, देवउठनी ग्यारस है।।
(4)

हाथ में मेरे, पीला पीतांबर,
अखियां खोलो तो हरी, मैं तुम्हें पहनाने आई।
अखियां खोलो तो हरी, देवउठनी ग्यारस है।।
(5)

हाथ में मेरे, भोगों की थाली,
अखियां खोलो तो हरी, मैं भोग लगाने आई।
अखियां खोलो तो हरी, देवउठनी ग्यारस है।।
(6)

हाथ में मेरे, ढोलक मजीरा,
जागो-जागो रे हरी, मैं तुम्हें जगाने आई।
अखियां खोलो तो हरी, देवउठनी ग्यारस है।।

ANKHIYA KHOLO RE HARI DEV UTHNI GYARAS AAYI

देवउठनी ग्यारस का पावन दिन आया, मन में हरि के दर्शन की ललक जगी। जैसे कोई प्रिय की राह देखता हो, वैसे ही आँखें खोलने की पुकार है। गंगाजल का लोटा हाथ में, उनके चरण धोने की चाह, मानो हर बूँद में श्रद्धा समाई हो।

चंदन की कटोरी लिए, तिलक लगाने की उत्सुकता, जैसे कोई माँ अपने लाल को सजाए। फूलों की माला गूँथी, हरि को पहनाने की इच्छा, जैसे प्रेम का हर धागा उनसे जुड़े। पीतांबर का वस्त्र, जो उनके लिए ही लाया, मानो सूरज की किरणें उनके अंग सजाएँ।

भोग की थाली सजा, हर स्वाद में भक्ति भरी, जैसे हर कण में प्रेम का प्रसाद हो। ढोलक-मजीरे की ताल लिए, जागो हरि की पुकार, जैसे भक्त की आवाज़ आसमान तक जाए। यह ग्यारस का मंगल दिन, हरि को जगाने और मन को उनके रंग में रंगने का समय है।

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