नंद दुलारे आजा तुम्हें भक्त पुकारे आजा
नंद दुलारे आजा तुम्हें भक्त पुकारे आजा
ओ नंद दुलारे, आजा,
तुम्हें भक्त पुकारे, आजा!
तुम हो भक्तों के सखा,
ज्ञान गीता का सुना!
ओ कुंज बिहारी, आजा...
ओ नंद दुलारे, आजा...
तेरे दर्शन बिना हम दुखी हो रहे,
झूठ, पाप में हम लीन हो रहे,
ऐसी भक्तों की पुकार
सुननी होगी बार-बार,
ओ श्यामा! तू दर्शन दिखा जा!
गायों की बुरी दशा हो रही,
तेरी याद में श्यामा रो रही,
ऐसी बंसी तू बजा,
इन्हें दुष्टों से बचा,
इनका तू कष्ट मिटा जा!
द्रुपद सुता की लाज बचा,
जो थी सभा में आन गिराई,
उसका चीर बढ़ा,
उसकी लाज बचा,
ओ नंद दुलारे, आजा...
तुम्हें भक्त पुकारे, आजा!
तुम हो भक्तों के सखा,
ज्ञान गीता का सुना!
ओ कुंज बिहारी, आजा...
ओ नंद दुलारे, आजा...
तेरे दर्शन बिना हम दुखी हो रहे,
झूठ, पाप में हम लीन हो रहे,
ऐसी भक्तों की पुकार
सुननी होगी बार-बार,
ओ श्यामा! तू दर्शन दिखा जा!
गायों की बुरी दशा हो रही,
तेरी याद में श्यामा रो रही,
ऐसी बंसी तू बजा,
इन्हें दुष्टों से बचा,
इनका तू कष्ट मिटा जा!
द्रुपद सुता की लाज बचा,
जो थी सभा में आन गिराई,
उसका चीर बढ़ा,
उसकी लाज बचा,
ओ नंद दुलारे, आजा...
Nand Dulare Aaja - नन्द दुलारे आजा
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In this video we are talking about a devotee who is calling Lord Krishna (Nand Dulaare means son of Nand).. praying for Lord Krishna.
सुन्दर भजन में श्रीकृष्णजी की करुणा और भक्तों की पुकार का गहन भाव प्रकट होता है। यह पुकार केवल शब्दों तक सीमित नहीं है, बल्कि आत्मा की गहराइयों से उठने वाली भावपूर्ण आर्ति है। जब भक्तों का मन अशांत होता है, जब सांसारिक विकारों से घिरा जीवन मार्ग भटक जाता है, तब श्रीकृष्णजी के स्मरण में ही वास्तविक शांति मिलती है।
श्रीकृष्णजी केवल एक दिव्य स्वरूप नहीं, बल्कि भक्तों के सखा भी हैं—जो प्रेम और ज्ञान दोनों का आलोक फैलाते हैं। सुन्दर भजन में यह भाव प्रकट होता है कि जब जीवन में अंधकार बढ़ जाता है, जब अधर्म प्रबल होता है, तब श्रीकृष्णजी के दर्शन ही सच्चा प्रकाश बनकर मार्गदर्शन करते हैं। उनका प्रेम बंसी की मधुर ध्वनि के समान है, जो जीवन की हर पीड़ा को हरता है।
गायों की दशा, पृथ्वी की करूणा, और भक्तों की व्याकुलता—सब कुछ श्रीकृष्णजी के स्नेहपूर्ण स्पर्श की प्रतीक्षा करता है। जब उन्होंने द्रौपदी की लाज बचाई थी, तब केवल वस्त्र नहीं बढ़ाया था, बल्कि धर्म की रक्षा की थी। यह भजन इसी भाव को जीवंत करता है कि जब कोई भक्त पुकारता है, तो श्रीकृष्णजी उसकी रक्षा करते हैं, उसकी पीड़ा का अंत करते हैं, और उसे अपने प्रेम से अभिषिक्त करते हैं।
श्रीकृष्णजी केवल एक दिव्य स्वरूप नहीं, बल्कि भक्तों के सखा भी हैं—जो प्रेम और ज्ञान दोनों का आलोक फैलाते हैं। सुन्दर भजन में यह भाव प्रकट होता है कि जब जीवन में अंधकार बढ़ जाता है, जब अधर्म प्रबल होता है, तब श्रीकृष्णजी के दर्शन ही सच्चा प्रकाश बनकर मार्गदर्शन करते हैं। उनका प्रेम बंसी की मधुर ध्वनि के समान है, जो जीवन की हर पीड़ा को हरता है।
गायों की दशा, पृथ्वी की करूणा, और भक्तों की व्याकुलता—सब कुछ श्रीकृष्णजी के स्नेहपूर्ण स्पर्श की प्रतीक्षा करता है। जब उन्होंने द्रौपदी की लाज बचाई थी, तब केवल वस्त्र नहीं बढ़ाया था, बल्कि धर्म की रक्षा की थी। यह भजन इसी भाव को जीवंत करता है कि जब कोई भक्त पुकारता है, तो श्रीकृष्णजी उसकी रक्षा करते हैं, उसकी पीड़ा का अंत करते हैं, और उसे अपने प्रेम से अभिषिक्त करते हैं।
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Author - Saroj Jangir
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