बन्सी का बजाना री सखी भजन
बन्सी का बजाना री सखी भजन
बन्सी का बजाना री सखी मैं कैसे छोड़ूँ आज |इस बन्सी में सब रागों की मोहक भरी आवाज
वीणा ताल मृदंग सारंगी बाजें सब ही साज ||
बन्सी का ------
इस बन्सी की धुन को सुनके मग्न हुए मुनिराज
स्वर्गलोक से सुनने आवे मिलकर देव समाज ||
बन्सी का ------
इस बन्सी में निगमागम की वाणी रही विराज
जो सुन ले वह मोक्ष को पावे सफल होय सब काज ||
बन्सी का ------
वृन्दावन में श्यामसुंदर की रही बाँसुरी बाज
ब्रहमानन्द शरण में आया रखियो मोरी लाज ||
बन्सी का ------
Brahmanand :Banshi ka bajana ri sakhi mein kaise chhodu-A Brahmanand bhajan sung by S.S. Ratnu.
भजन में श्रीकृष्णजी की बंसी की मधुर धुन की महिमा गूँजती है, जो हर हृदय को मोह लेती है। यह वह पुकार है, जो बंसी की आवाज को सारे रागों और साजों का सार मानती है, जैसे वीणा, ताल, और मृदंग की मिठास उसमें समाई हो। यह प्रेम और भक्ति का वह राग है, जो वृंदावन की गलियों में श्रीकृष्णजी की लीलाओं को जीवंत करता है।
बंसी की धुन में वह जादू है, जो मुनियों को मगन कर देता है और स्वर्ग से देवताओं को बुला लाता है। जैसे कोई विद्यार्थी किसी गहरे ज्ञान को सुनकर उसमें खो जाता है, वैसे ही यहाँ बंसी की धुन हर सुनने वाले को प्रभु के रंग में रंग देती है। यह वह शक्ति है, जो मन को शांति और आनंद से भर देती है।
निगम-आगम की वाणी का बंसी में समाहित होना उसकी दिव्यता को दर्शाता है, जो सुनने वाले को मोक्ष की राह दिखाती है। जैसे कोई चिंतक जीवन के सत्य को सरलता से समझाता है, वैसे ही यह बंसी हर कार्य को सफल बनाने का विश्वास जगाती है। यह वह धुन है, जो भक्त के मन को प्रभु के चरणों तक ले जाती है।
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